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मातृ दिवस पर ताजातरीन गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२


नौ माह जिसने कोख में पाला सँभाल कर
आये जो गोद  में  तो  उछाला सँभाल कर।१।
*
कोई  बुरी  निगाह  न  पलभर  असर  करे
काजल हमारी आँखों में डाला सँभाल कर।२।
*
बरतन घरों के  माज  के पाया जहाँ कहीं
लायी बचा के आधा निवाला सँभाल कर।३।
*
सोये अगर  तो  हाल  भी  चुप के से जानने
हाथों का रक्खा रोज ही आला सँभाल कर।४।
*
माँ ही थी जिसने प्यार से सँस्कार दे के यूँ
घर को बनाया  एक  शिवाला सँभाल कर।५।
*
सुख दुख में राह देता है अब भी हमें तो वो
रक्खा है उसकी याद का डाला सँभाल कर।६।

मौलिक /अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 851

Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 20, 2021 at 9:07am

आ. भाई ब्रिजेश जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 19, 2021 at 5:38pm

बहुत ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय धामी जी...बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2021 at 12:35pm

आ. भाई आज़ी तमाम जी, अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2021 at 12:33pm

आ. भाई शून्य आकाशी जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए धन्यवाद।

Comment by Aazi Tamaam on May 15, 2021 at 3:59pm

खूबसूरत ग़ज़ल के लिए सहृदय शुक्रिया आ धामी सर

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है माँ पर

Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on May 15, 2021 at 2:20pm

माँ पर लिखी गई एक बेहतरीन ग़ज़ल | बधाई स्वीकारें लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर  जी | 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 12, 2021 at 2:41pm

आ. भाई विनय जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए धन्यवाद।

Comment by विनय कुमार on May 12, 2021 at 11:15am

बेहद खूबसूरत और बेहतरीन गजल, माँ के लिए जो लिखा जाए वह कम है. बहुत बहुत बधाई आ लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहब

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 12, 2021 at 7:00am

आ. भाई गुरप्रीत जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित, सराहना व सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद। 

आला-स्टेथोस्कोप

डाला-बाँस का बड़ा टोकरा।

मतले के उला में जिसने की जगह "अपनी" पढ़े। सादर...

Comment by Gurpreet Singh jammu on May 11, 2021 at 9:01pm
  1. वाह वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी । मात्र दिवस पर मां को समर्पित बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आप ने । बहुत ही अच्छे भाव गजल में आपने । गजल वाकई दिल से निकली हुई महसूस हो रही है । बहुत बहुत मुबारकबाद । चौथे शेर में आला और आखिरी शेर में डाला काफियों का अर्थ बताने की कृपा करें जी । एक बात जो मन में आ रही है की मतले के ऊला में   `जिसने` शब्द अगर लिया गया है तो सानी में उसका ज़िक्र भी होना चाहिए । या फिर ऊला से `जिसने` हटा कर उसकी जगह कुछ और जैसे `माँ ने` लिखना शायद ज्यादा ठीक रहेगा । धन्यवाद

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