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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-125

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 125वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहमद फ़राज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की "

 2122           1122            1122                112

फ़ाइलातुन   फ़इलातुन      फ़इलातुन           फ़इलुन/फ़ेलुन

बह्र:  रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ रूप

रदीफ़ :-  नहीं की
काफिया :- इश ( नुमाइश, बारिश, ख़्वाहिश, जुम्बिश, कोशिश, गुजारिश, आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 नवंबर दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 28 नवंबर  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 नवम्बर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन । अचछी गजल हुई ह हार्दिक बधाई ।

जनाब लक्षमण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के बेहद मशकूर हूँ। सादर। 

आद0अमीरुद्दीन 'अमीर' जी सादर अभिवादन। एक से बढ़कर एक अक्षर की झड़ी लगा दी है आपने। बधाई स्वीकार कीजिये

जनाब सुरेन्द्र नाथ  'कुशक्षत्रप' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के बेहद मशकूर हूँ। सादर। 

मुहतरम दण्डपाणि 'नाहक़' साहब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के बहुत शुक्रिया। सादर। 

वो भी अनजान रहा दर्द की पुर्सिश नहीं की
अपने हालात की मैंने भी नुमाइश नहीं की

रूखी सूखी में ही ख़ुश हो के गुज़ारा है किया
मैंने धन की तो कभी ज़ीस्त में ख़्वाहिश नहीं की

जीत मिल जाती है उसको भी सितम तो देखो
जीतने की यहाँ जिसने कभी कोशिश नहीं की

फिर तो बाज़ार में बिकने से रहा वो सामान
आपने उसकी अगर जम के नुमाइश नहीं की

दौर ऐसा नहीं देखा है ज़माने ने जहाँ
इश्क़ पर कोई न कोई कड़ी बन्दिश नहीं की

मुफ़लिसी थी मुझे मंज़ूर मगर दौलत की
कर्म से हट के कभी मैंने परस्तिश नहीं की

करते हो औरों पे तनक़ीद बताओ यारो
तुमने क्या साथ किसी के कभी साज़िश नहीं की

करते हैं सब ये मगर सच है कभी भी यारा
"हमने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की"

क़ाबलीयत पे मिला काम तुझे 'नाथ' यहाँ
सुनते हैं तेरी किसी ने भी सिफ़ारिश नहीं की

मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी बेहतरीन ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें।

आद0 रचना भाटिया जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और दाद का हृदयतल से शुक्रिय।

जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें ।

गिरह का मिसरा बह्र में नहीं है, देखें ।

आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। आपकी ही कृपादृष्टि है कि कुछ कह पता हूँ। आपका आशीष मेरे लिए अनमोल है। बहुत बहुत आभार आपका

आदरणीय सुरेंद्र जी नमस्कार

बहुत पसंद आई ग़ज़ल

बधाई स्वीकार करें।

आद0ऋचा यादव जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और दाद का शुक्रियः

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