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कोई इस तरह न तोड़े सपने (ग़ज़ल)

2122 1122 22

उम्र-भर चुभते हैं बिखरे सपने
कोई इस तरह न तोड़े सपने

टूट जाती है तभी नींद मेरी
जब कभी आते हैं अच्छे सपने

पूरे होने की कोई शर्त नहीं?
पूरे होते नहीं ऐसे सपने

हम हकीकत में यकीं रखते है
हों मुबारक़ तुझे तेरे सपने

वस्ल का वक़्त है नज़दीक बहुत
सुब्ह आते है अब उसके सपने

नींद अब मुझसे ख़फ़ा है, यानी
उसको रास आ गए मेरे सपने

अपनी क़िस्मत में फ़क़त प्यास ही थी
पर थे आँखों में नदी के सपने

देख! है कितना पशेमां, जिसने
नींद की चाह में बेचे सपने

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 16, 2017 at 5:04pm

आदरनीय जयनित भाई , अच्छी गज़ल हुई है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 15, 2017 at 3:23pm
आदरणीय भाई जयनित जी मुझे अपने प्रश्न का जवाब मिला मच की यही अंदाज तो सबको इसका दीवाना बना देता है गुत्थी को सुलझाने के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 15, 2017 at 3:16pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी, इस प्रस्तुति पर आपकी प्रतिक्रिया पाना मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है। और आप नाहक ही मेरा आभार प्रकट कर रहे हैं, यह तो इस मंच की विशेषता है जो यह हर किसी के लिए सीखने का माध्यम बनता है।
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 15, 2017 at 3:13pm
आदरणीय मो० आरिफ़ जी, इस प्रस्तुति पर आपका आशीर्वाद पा कर अभिभूत हूँ। सादर धन्यवाद आपको।
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 15, 2017 at 3:12pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी, हार्दिक धन्यवाद आपको।
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 15, 2017 at 3:11pm
आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी, आपकी विस्तृत टिप्पणी ने इस मंच को पुनः सार्थकता प्रदान करती हुई प्रतीत हो रही है। अंधे को क्या चाहिए?...दो आँखें! आपलोग हम नए जिज्ञासुओं के लिए ऐसी ही आँखों के समान हैं। इस हेतु आपको कोटि कोटि नमन आदरणीय।
आपके उपर्युक्त सभी सलाह से सहमत हूँ मैं। जैसा कि आपने एक शेर पर स्पष्टीकरण माँगा है, तो उस शेर के सन्दर्भ में मैं अपनी सोच आपके समक्ष रख रहा हूँ।
"नींद अब मुझसे ख़फ़ा है, यानी
उसको रास आ गए मेरे सपने"
इस शेर की उत्पत्ति का केंद्र हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्व० एपीजे अब्दुल क़लाम साहब का वह विचार है जिसमें उन्होंने कहा था- सपने वो नहीं होते जो हम नींद में देखते हैं, बल्कि असली सपने तो वो होते हैं जो हमें सोने नहीं देते।
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 15, 2017 at 3:03pm
मेरी रचनाओं पर निरंतर मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवादी हूँ आदरणीय समर कबीर जी।
Comment by Ravi Shukla on February 15, 2017 at 2:16pm

आदरणीय जयनित जी बहुत बहुत बधाई । गजलों को पढ़ने के साथ उस पर साथियों की चर्चा पढ़ना हमें इसीलिये अच्‍छा लगता है कि उससे चर्चा को नये आयाम मिलते है सीखने और जानने को कई बाते मिलती है इसलिये आपका और आदरणीय आशुतोष जी का इस गजल के हवाले से पुन: धन्‍यवाद 

Comment by Mohammed Arif on February 13, 2017 at 6:33pm
आदरणुय जयनित कुमार जी आदाब, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारक़बाद ।
Comment by नाथ सोनांचली on February 12, 2017 at 3:27pm
आद0 जयनित मेहता जी सादर अभिवादन, उम्दा ग़ज़ल पँर दिल खोल कर बधाई निवेदित है।

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