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कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

कुण्डलिया छंद 
=========
तिल हो गोरे गाल पर, निखरे गोरे गाल,
अला बला फटकें नहीं, किसकी गलती दाल
किसकी गलती दाल, पस्त हो सबकी हिम्मत 
रखें फटें में पाँव, कौन की खोटी किस्मत | 
चन्दा के भी दाग, सिन्धु में प्रेम सलिल हो 
सुन्दरता का चिन्ह, अगर गौरी के तिल हो |

- लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 6, 2016 at 10:55am

 कुंडलिया छंद सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका भाई रामबली गुप्ता जी 

Comment by रामबली गुप्ता on December 5, 2016 at 6:30pm
अच्छी कुण्डलिया बन पड़ी है बधाई स्वीकार करें भाई लक्ष्मण रामानुज जी
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 5, 2016 at 1:02pm

छंद सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री मिथिलेश वामनकर जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 4, 2016 at 8:42pm

आदरणीय लक्ष्मण सर, बहुत बढ़िया कुण्डलिया छंद लिखा है आपने. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 4, 2016 at 1:07pm

जी | कुंडलिया छंद पर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आपका श्री गिरिराज भंडारी जी | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 3, 2016 at 5:37pm

हार्दिक आभार आपका श्री विजय निकोरे जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2016 at 10:06am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बढिया कुन्डलिया  की रचना की आपने , हार्दिक बधाई आपको ।

गोरी ही  करना सही है -- गौरी अलग अर्थ दे रहा है ।

Comment by vijay nikore on December 2, 2016 at 3:32pm

बहुत सुन्दर। हार्दिक बधाई, लक्ष्मण जी।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 2, 2016 at 1:38pm

 नमस्ते समर कबीर साहब | कुंडलिया छंद पसंद करने के लिए हार्दिक आभार स्वीकारे | सादर 

Comment by Samar kabeer on December 1, 2016 at 5:09pm
जनाब लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी आदाब,अच्छा लगा आपका कुण्डलिया छन्द,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
पहली पंक्ति में दोनों जगह 'गोरें' को "गोरे" कर लें ।

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