For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल बतौर-ए-ख़ास ओबीओ की नज़्र

फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

कहूँ,ओबीओ से में क्या चाहता हूँ
ग़ज़ल की सुहानी फ़ज़ा चाहता हूँ

यही आरज़ू लेके आया हूँ यारो
मैं इस मंच को लूटना चाहता हूँ

ये समझो,मुझे कुछ भी आता नहीं है
मैं सब कुछ यहाँ सीखना चाहता हूँ

'मिथिलेश' ही सब से पहले जुड़े थे
मैं उनसे ग़ज़ल की अदा चाहता हूँ

'गिरिराज' तो मेरे हम अस्र ठहरे
मैं उनसे भी लेना दुआ चाहता हूँ

बहुत कुछ मुझे उनसे करना है साझा
मैं 'सौरभ' से इक दिन मिला चाहता हूँ

लिसानी हों या कि निकात-ए-अरूज़ी
मैं 'वीनस' से ही पूछना चाहता हूँ

ज़हानत मुझे 'नूर' की भा गई है
मैं साथ उनसे अपना सदा चाहता हूँ

बहुत है मुहब्बत मुझे ओबीओ से
यही 'बाग़ी' जी से कहा चाहता हूँ

मुलायम है लहजा बहुत 'योग' जी का
मैं उनसे ज़रा हौसला चाहता हूँ

खुले दिल के हैं 'राणा प्रताप', देखो
ख़ुदा से मैं उनका भला चाहता हूँ

है बारीक बीं मेरी 'राजेश' बहना
मैं उनकी नज़र माँगना चाहता हूँ

उमीदें बहुत हैं मुझे 'शिज्जु' जी से
मैं ऊँचा उन्हें देखना चाहता हूँ

'दिनेश' अपने मतलब से रखते हैं मतलब
मैं तारीफ़ उनकी किया चाहता हूँ

बना लूँ तुम्हें 'जान' जी ,जान अपनी
इजाज़त तुम्हारी ज़रा चाहता हूँ

'विजय' जी हों या कि हों 'गोपाल' दादा
मैं दोनों से एहद-ए-वफ़ा चाहता हूँ

'लडीवाला' जी तो ये ख़ुद कह चुके हैं
"बदलना समय को ज़रा चाहता हूँ"

'मुसाफ़िर'जी ,'सेठी'जी,'दूबे'जी आओ
सितारों से आगे बढ़ा चाहता हूँ

मिरे पास ग़ज़लों का है इक ख़ज़ाना
उसी को यहाँ बाँटना चाहता हूँ

मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत
मैं तुमसे भला और क्या चाहता हूँ

अगर कोई गाहक मिले तो बताना
"समर" को मैं अब बेचना चाहता हूँ


"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1904

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on September 27, 2017 at 5:34pm
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Ravi Shukla on September 27, 2017 at 12:50pm
मोबाइल के कारण कुछ टंकण त्रुटियां नज़र अंदाज़ कर देने की गुज़ारिश है।
Comment by Ravi Shukla on September 27, 2017 at 12:34pm
नहीं है समर आपका मोल कोई,
कहें दिल मे सबके रहा चाहता हूँ।

में खुद मुंतज़िर हूँ फुनूने सुखन का,
ज़रा फ़ैज़ में आपका चाहता हूँ।

ज़रा देर से बज़्म में आया तो क्या,
शरीक अब ग़ज़ल में हुआ चाहता हूँ।

ग़ज़ल ये मता ए सुखन से निकाली,
महिंदर को देना दुआ चाहता हूँ।

जो सीखा यही से यही बांटा मैंने,
इसी मंच का मैं भला चाहता हूँ।

तबीयत है नासाज़ मेरी अभी कुछ,
यही कह जे रुख़्सत हुआ चाहता हूँ।

कहे फ़िल बदीही ये अशआर मैंने,
करम इनमें इस्लाह का चाहता हूँ।

आदरणीय समर साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने मैन जुलाई 2015 में ई obo जॉइन किया था इस लिए पहले नही देख पाया ये ग़ज़ल। आपका कलाम हर मायने में अलहदा है । बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिए। ग़ज़ल पढ़ कर जो फ़िले बदीह अशआर हुए उन्हें रख दिया है । सादर
Comment by Samar kabeer on September 27, 2017 at 10:44am
मोहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by pratibha pande on September 26, 2017 at 6:18pm

ओबीओ  के प्रति अपने प्यार का बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है आपने  आदरणीय समर कबीर जी ,  हार्दिक बधाई प्रेषित करती हूँ आपको इस ग़ज़ल पर ...   सादर 

Comment by Samar kabeer on September 26, 2017 at 3:05pm
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,आप सबकी महब्बत को सलाम, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 26, 2017 at 3:00pm
आदरणीय समर सर यह ग़ज़ल तो लाजबाब है ..ओ बी ओ के सभी सितारों को एक साथ फलक पर सजा दिया आपने ..आपकी प्रतिक्रियाओं से ग़ज़लों की बारीकी सीखने का मौका रोज मिलता है मंच पर आना सार्थक होता है आपका आशीर्वाद हम सबको इस मंच को मिलता रहे यही दिल की कामना है ..सादर प्रणाम के साथ
Comment by Samar kabeer on September 26, 2017 at 2:44pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,ये सब ओबीओ का ही कमाल है जो मुझसे ऐसी रचनाएँ हो जाती हैं,और आप सबकी महब्बत इस में सोने पर सुहागा का काम करती हैं,मैं अपने इस परिवार पर जितना भी नाज़ करूँ कम है,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

'सलामत रहो भाई 'सरना'जी तुमको
यही आज देना दुआ चाहता हूँ'
Comment by Sushil Sarna on September 26, 2017 at 1:44pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब , हर लफ्ज़ आपकी तारीफ़ की रोशनी के आगे जुगनू साबित होता है। इस मोहब्बत से लबरेज़ ग़ज़ल की महक ने हर आम-ओ-ख़ास को अपनी जद में ले लिया है। ओ बी ओ मंच और उसका हर सदस्य आपको और आप हर सदस्य को दिलोजान से चाहते हैं , ये इस ग़ज़ल के माध्यम से आपने बता दिया। इस बेहतरीन ग़ज़ल और प्यार के लिए दिल से मुबारक। ४ लाइनें आपकी नज़्र हैं :

खबर है हमें आप क्या चाहते हैं
हर बशर का बस भला चाहते हैं
लूटा मोहब्बत ने आपकी सभी को
हम भी दुआ आपकी लूटना चाहते हैं

Comment by Samar kabeer on September 26, 2017 at 12:33pm
जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,नहीं पढ़ सकते भाई,मगर क्या करें जज़्बात की रौ में बह गए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service