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जन्म सिद्ध अधिकार बनाम....स्वतंत्रता????
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१४ और  १५ अगस्त की आधी रात को दो देशों को फिरंगियों से आज़ादी नसीब हुई.
आखिर आज़ादी दिन के उजाले में नहीं मिली ...मिली तो रात की कालिमा के साये में सो वो कालिमा 
स्वतंत्रता के  इस अधिकार को ऐसा डस रही है कि बस !!! 
पाक कि आज़ादी बोले तो वो कभी अपनी कट्टर-पंथी छवि से मुक्त ही कहाँ हुआ है जो इत्मिनान से आज़ादी के बेर चखे..
ऊपर  से आतंकवादियों के निर्माण को उद्योग का दर्ज़ा दे के ..मुहँ की खा रहा है...
मुहँ की खा रहा है मतलब,सब कुछ  कर-कुराने के बाद ऐसा पल्टी मारता है कि कोई सांप भी शर्मा जाये ..
जाने दो बेचारा पाकिस्तान अपने ही बोझ तले एक बार फिर आज़ादी के लिये छटपटा रहा है ऐसे में उसे और क्यूँ परेशान करें.....
अब १५ को हमने आज़ादी पाई...
सब कुछ स्वतंत्र
कुछ भी करने को आज़ाद
रात को मिली ना स्वतंत्रता! सो दिन निकलते-निकलते सब कुछ चेंज....
वो चेंज आज बड़ा हो के बयानों के बड़बोलेपन  और भ्रष्टाचार  के राजनीतिक शिष्टाचार में 
ऐसा एक्सचेंज हो गया है की मत पूछो....
इन पचास सालो में हमारी तरक्की देखिए कि आज हम टॉयलेट में भी फोन की सुविधा अव्हेल कर सकते हैं और वहां से बता सकते है की मै आउट ऑफ़ स्टशन हूँ...हा...हा...हा.
बिना शादी किये लिव इन रिलेशनशिप के बिस्तर पे गुलछर्रे उड़ा कर खुद को अल्ट्रा माडर्न..माडर्न या 
चालू भाषा में बोले तो अगाऊ कहलाने की आज़ादी का जश्न मना रहें हैं लोग .
राजनीती में स्वतंत्रता की तो जैसे सीमाएं ही नहीं है....क्या कोड़ा (झारखंडी सी. एम. मधु कोड़ा ) और क्या कांडा हर ब्रांड का भ्रष्टाचार करने की असीमित आज़ादी....
राज-भवन में बुढौती में राज्यपाल पद की गरिमा को चार-चाँद लगा कर बाद में कोर्ट के लेबर-रूम में एक जवान बेटे के बाप के रूप में पैदा होने की अलौकिक आज़ादी..ठेठ एन .डी.स्टाइल... अरे देश आज़ाद है...कुछ भी करो.
दुकान एक खोलो माल दूसरा बेचो....लोकपाल विधेयक के मुद्दे की दुकान खोली और सरकार में भ्रष्ट मंत्रियो की गिनती करने का माल बेचने लगे ...नतीजा बैक टू पवेलियन...
योग और चूरन बेचने की टपरी लगाई  और लगे बेचने विदेशों से काला धन लाने का मुद्दा...अंततोगत्वा हरिद्वार रिटर्न....
बेचारी जनता का  क्या जो भी उठ-सुठ हांक लेता है....अब उसे भी तो स्वतंत्रता है ना ! किसी के भी  पीछे जाकर नारे लगाने की आज़ादी......
बड़ी-बड़ी स्कूल्स हैं...और उससे भी बड़ी कोचिंग क्लास बनाने की आज़ादी....नाम  सर्व-शिक्षा अभियान ...
आम जनता भी आज़ादी के माने खूब समझती है...
हर दर ओ दीवार को खानदानी पीकदान समझ कर पिचकारियाँ छोड़ता रहता है...
शर्मो-हया को घर में रख कर सरे आम सड़क के किनारे लघु से लेकर दीर्घ शंका का समाधान कर लेता है...आज़ाद है...सिंपल!
कुल मिला के हम उस आज़ादी को आलिशान भोग रहें है जो हमें रात में मिली थी
हमें अभी भी इंतजार है दिन वाली चमकीली आज़ादी का जिसका सपना हमारे हर स्वतंत्रता सेनानी या शहीदों ने देखा था....
क्या हम बच्चे जो अब जरुरत से ज्यादा ही बड़े हो गए हैं ,उस आज़ादी को संभाल पाएंगे जो इन पंक्तियों में बयान है...
 "हम लायें हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के,
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के. "
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अविनाश बागडे.

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Comment

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Comment by AVINASH S BAGDE on August 22, 2012 at 12:57pm

Ashok सर  ,मेरी इस रचना  ने आपके ह्रदय   को स्पर्श किया 

लेखन सार्थक हुआ...
Comment by AVINASH S BAGDE on August 22, 2012 at 12:57pm

बहुत बहुत आभार सौरभ जी..आपको मेरी  बात ने ऐसी उम्दा टिप्पणी करने को बाध्य  कर मेरे  लेखन को सार्थकता का जामा पहनाया...

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 22, 2012 at 12:15am

वाह साहब बहुत सुन्दर.... दिल के अरमा आंसुओं में बह गये...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2012 at 11:42pm

कहने-कहने में आपने क्या नहीं कह डाला, भाई अविनाशजी, और बघार भी वो डाली कि वाह-वाह-वाह कर उठे. राजनीतिक परिदृश्य की क्या ही तस्वीर निकाली है ! वाह !!लेख में चुटीलेपन के लिये बधाई स्वीकरें.

Comment by AVINASH S BAGDE on August 21, 2012 at 11:20pm

aabhar Rekha mam..

Comment by Rekha Joshi on August 17, 2012 at 1:13pm

हमें अभी भी इंतजार है दिन वाली चमकीली आज़ादी का जिसका सपना हमारे हर स्वतंत्रता सेनानी या शहीदों ने देखा था....

क्या हम बच्चे जो अब जरुरत से ज्यादा ही बड़े हो गए हैं ,उस आज़ादी को संभाल पाएंगे जो इन पंक्तियों में बयान है...
 "हम लायें हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के,
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के. "बढ़िया कटाक्ष आदरणीय अविनाश जी ,बधाई 
Comment by AVINASH S BAGDE on August 17, 2012 at 12:23pm

Shukriya Sandeep bhai..

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 17, 2012 at 9:12am

आदरणीय अविनाश सर जी सादर नमन
क्या गजब का कटाक्ष किया है आपने
आज़ादी के मायने ग़ज़ब के हो गए हैं अजब की संस्कृति हो गयी है क्या कीजिये

Comment by AVINASH S BAGDE on August 16, 2012 at 8:23pm

rajesh kumariमैम,बहुत-बहुत आभार आपकी हौसला अफजाई का....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 16, 2012 at 3:31pm

बहुत जबरदस्त कटाक्ष किया है अविनाश बागडे जी हम लोगों ने ही अपनी मानसिकता के चलते आजादी के मायने खो दिए हैं बहुत संघर्ष करना पड़ेगा वास्तविक आजादी के लिए --बहुत बहुत बधाई 

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