For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उसने आज़ाद कब किया है मुझे (ग़ज़ल)

2122 1212  22/122

क़ैद नज़रों में ही रखा है मुझे

उसने आज़ाद कब किया है मुझे  (1)

इससे बहतर तो था अदू मेरा
यार दीमक सा खा रहा है मुझे  (2)

 रात की नींद उड़ गई मेरी
ख़्वाब में जब से वो दिखा है मुझे  (3)

सुब्ह तक होश में नहीं आया
रात इतनी पिला चुका है मुझे  (4)

मंज़िलों तक पँहुच नहीं पाया
पर वो रस्ता बता गया है मुझे  (5)

वो शिकायत कभी नहीं करता
उससे इतना ही अब गिला है मुझे  (6)

मैं तो पहचानता नहीं उसको
यार लेकिन वो जानता है मुझे  (7)

मश्क़ मरने की क्यों करूँ "सालिक"
अब तो जीना भी आ गया है मुझे  (8)

* मौलिक/अप्रकाशित

Views: 558

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 25, 2020 at 11:58am

बढ़िया ग़ज़ल हुई आदरणीय सालिक जी...

Comment by सालिक गणवीर on December 24, 2020 at 8:11pm

उस्ताद -ए - मुहतरम समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और सराहना के लिए ह्रदय से आभार। आपकी क़ीमती इस्लाह के लिए ममनून हूँ। देर से जवाब देने के लिए माज़रत चाहता हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on December 24, 2020 at 8:07pm

मुहतरम अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और सराहना के लिए ह्रदय से आभार। आपने मतला सहीह सुझाया है आदरणीय मगर तनाफ़ूर है ,समर कबीर साहिब ने नया मतला लिख दिया है वही उपयुक्त लगा है. उम्मीद करता हूँ भविष्य में भी आपका स्नेह और मार्गदर्शन मिलता रहेगा। देर से जवाब देने के लिए माज़रत चाहता हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on December 24, 2020 at 7:59pm

भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और सराहना के लिए ह्रदय से आभार

Comment by Samar kabeer on December 19, 2020 at 2:32pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब , ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I

उसने आज़ाद कर दिया है मुझे
क़ैद कर के कहीं रखा है मुझे  

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, मतला दुसरा कहने का प्रयास करें I 

कह रहा है कि जानता है मुझे 

इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-

`यार लेकिन वो जान्ता है मुझे`

मश्क़ मरने का चल करें "सालिक"

इस मिसरे में `मश्क़` शब्द स्त्रीलिंग है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-

`मश्क़ मरने की क्यों करूँ `सालिक`  
 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 15, 2020 at 2:33pm

जनाब सालिक़ गणवीर जी आदाब बहुत अच्छी ग़ज़ल पेश की है आपने दाद ओ मुबारकबाद पेश करता हूँ मतले और मक्ते पर अर्ज़ करना चाहता हूँ कि 

उसने आज़ाद कर दिया है मुझे.        उसने आज़ाद तो किया है मुझे 

क़ैद कर के कहीं रखा है मुझे (1).     क़ैद नज़रों में कर रखा है मुझे

मश्क़ मरने का चल करें "सालिक".    बात मरने की क्यों करें "सालिक" 

अब तो जीना भी आ गया है मुझे (8)अब तो जीना भी आ गया है मुझे    सादर। 

 

* मौलिक/अप्रकाशित

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2020 at 10:59am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
14 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
17 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
22 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
39 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
48 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
53 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service