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माँ की मिली जो गोद तो जन्नत में आ गए.- गजल

बहर- 221, 2121, 1221, 212

घर से निकल के आज अदालत में आ गए,

नाज़ुक हमारे रिश्ते मुसीबत में आ गए. 

हमने जरा सा आइना उनको दिखा दिया,

अहसान भूल कर वो अदावत में आ गए.

कोने में पेड़ आम का चुपचाप है खड़ा, 

जंगल में थे बबूल सियासत में आ गए. 

चाहत में आसमां की, जमीं भी खिसक गई,

क्यूँ गाँव छोड़ शह्र की आफत में आ गए. 

दामन को हमने सत्य के थामा जरा सा क्या,

सारे महल हमारी खिलाफत में आ गए.

घंटी बजी जो द्वार की पाया उन्हें वहाँ,

थे जो हमारे ख्वाब हकीकत में आ गए.

 

हमको ग़मों से कोई शिकायत नहीं रही,

अब वो हमारी रोज की आदत में आ गए.

भटके जहान भर में मगर कुछ नहीं मिला,  

माँ की मिली जो गोद तो जन्नत में आ गए.

मौलिक एवं अप्रकाशित .

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 7, 2020 at 3:57pm

आदरणीय आशीष यादव जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by आशीष यादव on August 26, 2020 at 12:33am

Very good अशआर हैं। आदरणीय उस्ताद समर कबीर साहब से हमेशा कुछ न कुछ सीखने को मिलता रहता है। good गजल पर congratulations स्वीकार कीजिए।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 24, 2020 at 11:02am

आदरणीय Sheela Sharma जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाअफजाई के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 24, 2020 at 11:02am

आदरणीय Samar kabeer जी सादर नमस्कार 

आपकी इस्लाह से मुझे हमेशा ही कुछ न कुछ सीखने को मिलता है, सादर नमन आपको 

Comment by Sheela Sharma on August 24, 2020 at 10:12am

बहुत सुंदर रचना..।हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on August 21, 2020 at 3:24pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'अहसान भूल कर वो अदावत में आ गए'

इस मिसरे में 'अदावत में आ गए' वाक्य विन्यास ठीक नहीं है, सहीह वाक्य होगा "अदावत पे आ गए"

'सारे महल हमारी खिलाफत में आ गए'

इस मिसरे में 'ख़िलाफ़त' क़ाफ़िया उचित नहीं आप यहाँ "मुख़ालिफ़त" कहना चाहते हैं,जो यहाँ आ नहीं सकता ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 20, 2020 at 11:53am

आदरणीया   Dimple Sharma  जी सादर नमस्कार 

आपकी प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 20, 2020 at 11:52am

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाअफजाई के लिए सादर नमन आपको 

Comment by Dimple Sharma on August 19, 2020 at 10:07pm

नमस्ते आदरणीय, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें, तीसरा शेर कमाल हुआ है विशेष बधाई इस शेर पर ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2020 at 11:12am
आ. भाई बसंत कुमार जी, सादर अभिवादन । इस बेहतरीन गजल को लिए बहुत बहुत बधाई ।

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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