For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)

ग़ज़ल-  8 + 8 + 8   (रोला मात्रिक)

किस सागर में  जान मिलेगी  धार समय की 

कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की 

मोल समय का  उससे जाकर  पूछो माधो 

नासमझी में  जिसने झेली  मार समय की 

जीवन नैया  पार हुई बस  उस केवट से 

कसकर थामी  जिसने  भी पतवार  समय की 

आलस छोड़ो  साहस धारो  कर्म करो तुम 

उठ जाओ अब सुनकर तुम फटकार समय की 

कद्र तुम्हारी  ये संसार करेगा उस दिन 

कद्र करोगे  जिस दिन बरखुर्दार समय की 

पल घुँघरू है  दिवस -निशा दो पायल समझो 

गूंज रही है सदियों से झंकार समय की 

अवसर देता  वक़्त सभी को  नृप बनने का

दुर्भागी  ठुकरा देते  मनुहार  समय की

काट रही है  सदियों से जंगल भावी के                                 भावी = भविष्य काल 

पैनी होती  जाती है  तलवार समय की  

तुम 'खुरशीद' उजाले बोते  जाओ हर पल 

जीतोगे तुम  इक दिन होगी  हार समय की 

 मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 950

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कंवर करतार on January 1, 2015 at 9:58pm

कद्र तुम्हारी  ये संसार करेगा उस दिन 

कद्र करोगे तुम जिस दिन बरखुर्दार समय की 

पल घुँघरू है  दिवस -निशा दो पायल समझो 

गूंज रही है सदियों से झंकार समय की

खुर्शीद भाई , उम्दा ग़ज़लकार  हैं आप I सुंदर रचना के लिए बधाई कबूल करें I  

Comment by somesh kumar on January 1, 2015 at 8:36pm

पल घुँघरू है  दिवस -निशा दो पायल समझो 

गूंज रही है सदियों से झंकार समय की 

अवसर देता  वक़्त सभी को  नृप बनने का

दुर्भागी  ठुकरा देते  मनुहार  समय की

ये दोनों पंक्तिया ज़्यादा पसंद आई |पूरी गज़ल ही समय की कद्र का संदेश देती है |हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 1, 2015 at 8:01pm

आदरणीय खुर्शीद जी बेहद उम्दा ग़ज़ल हुई है एक एक अशआर सूक्ति की तरह लग रहा है आपको हार्दिक बधाई ....

मुझे केवल इस पंक्ति को गुनगुनाने के थोड़ी समस्या हुई ....  

कद्र करोगे तुम जिस दिन बरखुर्दार समय की 

Comment by दिनेश कुमार on January 1, 2015 at 8:00pm
Waaaah.....waaaaah ...बेहतरीन रचना ।

पल घुँघरू है दिवस -निशा दो पायल समझो

गूंज रही है सदियों से झंकार समय की ....kya baat hai...सभी अशआर टाप क्लास हैं। बरखुर्दार
वाले शे'र में लय मुझे टूटती लगी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2015 at 7:49pm

आदरणीय खुर्शीद जी क्या खूूब ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई हर शे'र मानीखेज है 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2015 at 7:32pm

khutsheed jee

बहुत उम्दा i आप  रचना में जान डाल  देते हैं i सादर i

Comment by Hari Prakash Dubey on January 1, 2015 at 7:31pm

मोल समय का  उससे जाकर  पूछो माधो 

नासमझी में  जिसने झेली  मार समय की....

बहुत ही सहज़ व सरल शब्‍दों में इतना विस्‍तृत रूप दिया आपने आदरणीय खुर्शीद जी, हार्दिक बधाई,

आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को नव-वर्ष २०१५ की ढेरों शुभकामनाये

Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on January 1, 2015 at 6:57pm

आदरणीय 'खुर्शीद' जी!

काट रही है  सदियों से जंगल भावी के  

पैनी होती  जाती है  तलवार समय की ..... इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिये आदरणीय

तुम 'खुरशीद' उजाले बोते  जाओ हर पल 

जीतोगे तुम  इक दिन होगी  हार समय की... वाह वाह क्या उत्साह वर्धक व प्रेरक पंक्ति है इसपे तो कौम की कौम फ़ना हो जाए... आपको हार्दिक बधाई आदरणीय..

Comment by Shyam Narain Verma on January 1, 2015 at 4:03pm

बहुत खूब .... शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service