For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उठाओ नजर रहगुज़र देख लो ।

यहाँ जिन्दगी का सफ़र देख लो ।

 

नियम कायदे तो बने हैं कई

मगर भंग हैं सब जिधर देख लो ।

 

न भय है न चिंता न है शर्म ही

बना है बशर जानवर देख लो ।

 

कहीं लूट है तो कहीं क़त्ल है

किसी भी नगर की ख़बर देख लो ।

 

गले मिल रहे दोस्त खंजर लिए

बदलते समय का असर देख लो ।

 

करें फ़िक्र उनकी जो हैं नापसंद

सियासत का है ये हुनर देख लो ।

 

बिछा हर तरफ सिर्फ कंक्रीट है

झुलसने लगे अब शजर देख लो ।

 

मौलिक/अप्रकाशित.

 

Views: 588

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 12, 2019 at 9:50am

वाह खूब ग़ज़ल कही है..बधाई

Comment by vijay nikore on October 8, 2019 at 1:46pm

बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, मित्र अशोक कुमार जी।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on October 7, 2019 at 5:31pm

बहुत सारी शिकायतों का गज़ल में सुंदर समावेष किया है अशोक जी बधाई

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 6, 2019 at 10:55am

आदरणीय सुशील सरना साहब सादर नमस्कार, गज़ल पर हुए मेरे प्रयास को सराहने के लिए आपका हृदय से आभार ।सादर ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 6, 2019 at 10:53am

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार ,  आपसे मिली दाद ने मेरे रचना कर्म को सार्थक किया है । हार्दिक आभार । सादर .

Comment by Sushil Sarna on October 4, 2019 at 2:00pm

बिछा हर तरफ सिर्फ कंक्रीट है

झुलसने लगे अब शजर देख लो ।
वाह आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी बहुत सुंदर और यथार्थ का चित्रण करती बेहतरीन ग़ज़ल। दिल से बधाई सर।

Comment by Samar kabeer on October 4, 2019 at 11:45am

जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,बहुत उम्द: ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service