For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"बहुत दिनों से है बाक़ी ये काम करता चलूँ"

ग़ज़ल

बहुत दिनों से है बाक़ी ये काम करता चलूँ

मैं नफ़रतों का ही क़िस्सा तमाम करता चलूँ

अब आख़िरत का भी कुछ इन्तिज़ाम करता चलूँ

दिल-ओ-ज़मीर को अपने मैं राम करता चलूँ

जहाँ जहाँ से भी गुज़रूँ ये दिल कहे मेरा

तेरा ही ज़िक्र फ़क़त सुब्ह-ओ-शाम करता चलूँ

अमीर हो कि वो मुफ़लिस,बड़ा हो या छोटा

मिले जो राह में उसको सलाम करता चलूँ

गुज़रता है जो परेशान मुझको करता है

तेरे ख़याल से कैसे कलाम करता चलूँ

"समर"हयात का मक़सद बना लिया है यही

चलन वफ़ा का ज़माने में आम करता चलूँ

"समर कबीर"

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1748

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on September 4, 2018 at 2:15pm

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on September 4, 2018 at 2:13pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,सुख़न नवज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on September 4, 2018 at 2:12pm

जनाब मिर्ज़ा जावेद बैग साहिब आदाब, सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Samar kabeer on September 4, 2018 at 2:10pm

जनाब लक्षण धामी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by vijay nikore on September 3, 2018 at 5:53pm

//बहुत दिनों से है बाक़ी ये काम करता चलूँ

मैं नफ़रतों का ही क़िस्सा तमाम करता चलूँ//.........

अच्छे ख़याल की चरम सीमा है आपके इन शब्दों में आदरणीय भाई समर जी। 

नफ़रत, गिला, तुलना आदि में रमा मानव ज़िन्दगी के कितने सुनहरे पल बरबाद कर बैठता है।

सारी गज़ल ही इसी तरह बेमिसाल है। आपको हार्दिक बधाई, भाई समर कबीर जी।

Comment by Ajay Tiwari on September 3, 2018 at 8:58am

आदरणीय समर साहब, खुबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.

Comment by Ravi Shukla on September 2, 2018 at 11:51pm

आदरणीय समर साहब नमस्कार बहुत ही अच्छी ग़ज़ल आपने कही मतले से हुस्ने मतला मुझे व्यक्तिगत रुप से ज्यादा पसंद आया हर शेर उम्दा है दिली मुबारकबाद कुबूल करें

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 1, 2018 at 11:13pm

अनुभव, मनोविज्ञान और आध्यात्मिक भाव समेटती बेहतरीन प्रेरक यथार्थपूर्ण ग़ज़ल हेतु और इसे  इस सम्मानित मंच पर  फ़ीचर ब्लॉग में शामिल  किये जाने पर तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब।

Comment by Mohammed Arif on September 1, 2018 at 10:33pm

बहुत दिनों से है बाक़ी ये काम करता चलूँ

मैं नफ़रतों का ही क़िस्सा तमाम करता चलूँ वाह! वाह! वाह! ज़िन्दाबाद ! ज़िन्दाबाद ! क्या ख़ूब शे'र कहा है आपने । काश ! हर एक नफ़रत का काम तमाम कर दें ।

अब आख़िरत का भी कुछ इन्तिज़ाम करता चलूँ

दिल-ओ-ज़मीर को अपने मैं राम करता चलूँ  वाह! वाह! कितनी साम्प्रदायिक सद्भावना वाला शे'र है । मज़ा आ गया शे'र को पढ़कर ।

शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।

Comment by Samar kabeer on September 1, 2018 at 10:30pm

जनाब प्रधान सम्पादक महोदय आदाब,मेरी इस ग़ज़ल को फ़ीचर ब्लॉग में शामिल करने के लिए आपका आभारी हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service