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होती नहीं  है भोर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१ २१२१ २२२  १२१२


कहते  नहीं  हैं  आपसे  रस्ता  सुझाइये
राहों में  यूँ  न   देश  की  रोड़ा लगाइये।१।


आता है भेड़िया तो कुछ हरकत दिखाइये
कमजोर गर  ये  हाथ  हैं  हल्ला  मचाइये।२।


कहते हो दूसरों की  है  सूरत अगर मगर
खुद को भी रोशनी में ये दर्पण दिखाइये।३।


होती नहीं  है भोर इक सूरज उगे से ही
गर देखनी हो भोर तो खुद को जगाइये।४।


बातों को दिल की रोज  ही ऐ  चाँद चाँदनी
सुननी मेरी गजल हो तो महफिल में आइये।५।


मौलिक अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2018 at 2:37pm

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन ।आपको गजल अच्छी लगी, लेखन सफल हुआ । प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by vijay nikore on July 12, 2018 at 12:55pm

//  कहते हो दूसरों की  है  सूरत अगर मगर
खुद को भी रोशनी में ये दर्पण दिखाइये ...//                   

गज़ल बहुत ही पसंद आई... हार्दिक बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2018 at 10:01pm

आ. नीलम जी, सादर अभिवादन । गजल की प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by Neelam Upadhyaya on July 9, 2018 at 1:57pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी जी, नमस्कार ।  अच्छी ग़ज़ल की पेशकश के लिए बधाई । 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 8, 2018 at 12:02pm

आ. भाई आरिफ जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by Mohammed Arif on July 8, 2018 at 9:51am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,

                    बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । हर शे'र माकूल है । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Samar kabeer on July 7, 2018 at 10:05pm

मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 7, 2018 at 7:45pm

आ. भाई शेख शहजाज जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 7, 2018 at 7:42pm

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और अत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 7, 2018 at 7:31pm

वाह। वर्तमान हालात पर प्रेरक अशआर समापन सहित बेहतरीन सृजन। हार्दिक बधाई मुहतरम जनाब  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब।

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