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चलती का नाम औपचारिकता (लघुकथा)

"ठीक है, तुम भी मेरी उपेक्षा कर आगे बढ़ जाओ, मुझे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता! बहुत सब्र है मुझमें!" सुबह की चहलक़दमी करते एक तंदुरुस्त आदमी से पतझड़ से गुज़रे सूखे दरख़्त ने कहा।


"पर उसमें भी अपने अन्य साथियों की तरह ज़रा भी सब्र नहीं है! क्या फ़ायदा उससे कुछ कहने से? उसे भी इस काम के बाद रोज़ाना की तरह दूसरे काम भी तो पूरे करना है न!" दूसरे साथी पेड़ ने उस से कहा।


"सही कहा तुमने। आज का ख़ुुुदग़र्ज़ आदमी धन-दौलत, फैशन और तरक़्क़ी की होड़ में न तो कोई रिश्ते सही तरह से निभा पा रहा है, न ही हमें और प्रकृति को निहार कर सदियों पूर्व की तरह  हमसे कोई सबक़ हासिल कर पा रहा है!" उस सूखे दरख़्त ने कुछ दुखी स्वर में कहा।


दोनों पेड़ गुजरते हुए हर उम्र के इंसानों को निहारते रहे, लेकिन किसी ने भी पल भर के लिए भी उनको न तो निहारा और न ही उनसे कुछ सीखा।


"चलो हम ही इंसानों से कुछ सबक़ ले लेते हैं। दुनिया की बदलाव की लहर में  हम ही ख़ुद को तनिक बदलने की कोशिश करते हैं!" दूसरे पेड़ ने सूखे हुए दरख़्त से स्नेहपूर्वक कहा।


"बदलने का सबक़ या बदला लेने का सबक़?" बदलती तेज़ हवा में अपनी किसी शाखा के कराहने की आवाज़ के साथ उस दरख़्त ने कहा।


"इंसान की तरह स्वार्थी, शैतान या हैवान बनना है, तो मौक़ापरस्ती के साथ सब कुछ करना सीखना ही  पड़ेगा! समझ लो कि स्वार्थपूर्तियों के लिए औपचारिकताएं निभा रहे हैं, बस!" दूसरे पेड़ ने, अपने-अपने मोबाइल सेट पर सोशल-मीडिया पर व्यस्त चहलक़दमी करने वाली एक युवा जोड़ी को निहारते हुए उस सूखे से किंतु तेज़ हवा में आत्मविश्वास के साथ लहराते हुए दरख़्त से कहा।


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 18, 2018 at 11:25pm

मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर इसके मर्म तक जाकर अपने विचार व प्रतिक्रिया सांझा करते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरमा जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब समर कबीर साहिब,जनाब विजय निकोरे साहिब, जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब, जनाब श्याम नारायण शर्मा साहिब,मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा और मुहतरमा बबीता गुप्ता साहिबा।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 19, 2018 at 7:04pm

जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब , अच्छी लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |

Comment by vijay nikore on June 19, 2018 at 8:59am

सदैव समान आपकेी यह लघुकथा भी अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई।

Comment by babitagupta on June 18, 2018 at 2:33pm

बेहतरीन रचना की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई,सर जी.

Comment by Samar kabeer on June 17, 2018 at 12:13pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on June 15, 2018 at 2:48pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                              इस पर्यावरणीय चिंता को दर्शाती लघुकथा के बारे में कहना चाहूँगा:-

                                  (1) मानवीकरण में लिखी गई सशक्त लघुकथा ।

                                    (2) पर्यावरणीय चिंता को प्रभावी तरीक़े से रखने में सफल कथा ।

                                      (3) पर्यावरण सुधार का आग्रह और भविष्य के प्रति गहरी चिंता ।

                                        (4) मानव की स्वार्थ लोलुपता की ओर इशारा ।

                                          (5) प्रकृति बचाव की चिंता ।

                                            (6) पात्रानुकूल संवाद और भाषा-शैली का प्रयोग ।

                                                      हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Neelam Upadhyaya on June 15, 2018 at 2:33pm

आदरणीय उसमानी जी, नमस्कार । समसामयिक प्रसंग पर अच्छी लघुकथा । हार्दिक बधाई ।

Comment by Shyam Narain Verma on June 15, 2018 at 10:31am
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥

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