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अवलम्बन (लघुकथा)

'भीड़' से हासिल अपने अनुभवों के मुताबिक़ मरियल से बुज़ुर्ग मियां-बीवी अपने कटोरे लेकर बहुचर्चित धरने वाली जगह पर कुछ मिलने की उम्मीद से पहुंचे। काफी देर तक भीड़ और अपने खाली कटोरों को ताकते हुए वे मंचीय भाषण सुनते रहे। फिर निराश होकर वहां से लौटने लगे।
"चलो मियां, किसी बड़े मंदिर या गुरुद्वारे की तरफ़ चलते हैं!" अपनी अधनंगी से पोती को गोदी में लेते हुए बीवी ने शौहर से कहा।
"हां चलो, वहीं धरना देते हैं! भूखे रहने और बोलते रहने पर भी इनकी  कोई नहीं सुनता!" शौहर ने भूखे पेट आगे क़दम बढ़ाते हुए कहा।
"ऊपर वाले पर भी इनका भरोसा ख़त्म! बड़ी-बड़ी बातें करवा लो, बस!"
"हमारी ज़रूरतें, प्यास और भूख तो बस ऊपर वाले को दिखाई देती है। वही आसरा है; बिना भाषण दिए वह हमारी सुन लेता है।" बीवी के कंधे का सहारा लेकर शौहर ने कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 13, 2018 at 2:51am

इतने बढ़िया शब्दों में मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब विजय निकोरे साहिब और जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2018 at 6:36pm

जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब ,दिल की गहराइयों को छूती सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by vijay nikore on April 11, 2018 at 11:56am

आपकी यह लघु कथा पढ़ी.. सच हैरान रह गया कि कैसे आपने यथार्थ को इतने कम कम शब्दों में प्रस्तुत किया है। हार्दिक बधाई इस रचना पर, आदरणीय शैख शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 4:03am

बिल्कुल सही कहा आप सभी ने।‌ रचना पर समय देकर इसकी गहराई तक जाकर अनुमोदन कर अपने विचार साझा करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया नीलम उपाध्याय जी, जनाब समर कबीर साहिब, जनाब तेजवीर सिंह साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब  श्याम नारायण वर्मा साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 1:22am

बिल्कुल सही कहा आप सभी ने।‌ रचना पर समय देकर इसकी गहराई तक जाकर अनुमोदन कर अपने विचार साझा करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया नीलम उपाध्याय जी, जनाब समर कबीर साहिब, जनाब तेजवीर सिंह साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब  श्याम नारायण वर्मा साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 1:19am

//एक जरूरतमन्द की जरूरत देखने-सुनने का समय किसी के पास नहीं है// ...

//बेबस लाचार और भूखों का एकमात्र सहारा तो बस नीली छतरी वाला ही है । भाषण देने वाले ..भूख-ग़रीबी का तांडव देखते हैं ।//...//समर्थ लोग भी केवल बातों से ही लोगों को बहलाते रहते हैं

Comment by Samar kabeer on April 10, 2018 at 6:04pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत ख़ूब वाह, बहुत उम्दा लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on April 10, 2018 at 4:12pm

आदरणीय शेख उस्मानी जी आदाब,

                              बहुत ही ताज़गीपूर्ण कथानक । बेबस लाचार और भूखों का एकमात्र सहारा तो बस नीली छतरी वाला ही है । भाषण देने वाले हरामी-कमीने बराबर राशन भी नहीं देते हैं । भूख-ग़रीबी का तांडव देखते हैं । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें इस शानदार-दमदार लघुकथा के लिए ।

Comment by Shyam Narain Verma on April 10, 2018 at 10:30am
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय, हार्दिक बधाई स्वीकारें
Comment by TEJ VEER SINGH on April 9, 2018 at 1:08pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा। गरीब और कमजोर तबके के प्रति समाज में दिन प्रति दिन बढ़ती उदासीनता का सटीक वर्णन।समर्थ लोग भी केवल बातों से ही लोगों को बहलाते रहते हैं।

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