For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गर्म होती जा रहीं है,

शहर में पागल हवाएँ.

क्या पता इन बस्तियों में,

कब पटाखे फूट जाएँ.

 

ढूँढता अस्तित्व अपना,

सच बहुत बेचैन है.

डस रहा है दिन उसे तो,

काटती अब रैन है.

 

डस्टबिन में जा चुकी हैं,

बुद्ध की जातक कथाएँ.

मात्र कहने के लिए है,

चेहरों पर मुस्कुराहट.

दूर से करते नमस्ते,

द्वार पर दिल के न आहट.

 

मंदिरों में भीड़ तो है,

हैं नहीं आराधनाएँ.

 

हर चुनावी साल में बस,

वायदों की बीन बजती.

रोटियों की कशमकश में,

जिन्दगी यूँ ही गुजरती.

 

पंख खुलने ही न देतीं,

ढेर सारी वर्जनाएँ.

"मौलिक एवं अप्रकाशित "

Views: 637

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 5:40pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी आपका ह्रदय 

से आभार 

Comment by नाथ सोनांचली on April 9, 2018 at 4:56am

आद0 बसन्त कुमार शर्मा जी सादर अभिवादन। वर्तमान हालात पर बेहतरीन गीत सृजन के लिए बधाई देता हूँ। सादर

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 5, 2018 at 9:38pm

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल जी आपका ह्रदय से आभार सुझाव के लिए 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 5, 2018 at 4:59pm

आ0 बसन्त कुमार जी अच्छी व्यंग रचना।

एक सुझाव

'हर चुनावी साल में बस

बीन वादों की है बजती

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 5, 2018 at 4:53pm

आदरणीय Samar kabeer जी का आभार 

Comment by Samar kabeer on April 5, 2018 at 3:21pm

ठीक है भाई ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 5, 2018 at 1:02pm

आदरणीय  Samar kabeer  जी,  हर चुनावी साल में अच्छे दिनों की बीन बजती , ठीक रहेगा क्या, देखिये 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 5, 2018 at 12:59pm

आदरणीय  Samar kabeer  जी आपके सुझाव का तहे दिल से शुक्रिया, सोचता हूँ क्या हो सकता है इसमें.

Comment by Samar kabeer on April 5, 2018 at 11:09am

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,आज के हालात पर बहुत उम्दा रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

चौथे बन्द की दूसरी पंक्ति में 'वायदों' ग़लत शब्द है सही शब्द है "वादों'" देखियेगा ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 5, 2018 at 9:44am

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी, आदरणीय Harash Mahajan जी आपका ह्रदय से आभार 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service