For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ,,,,चराग़ ए सुख़न हूँ,,,,,,,

अर्कान,,,122/122/122/122

मुहब्बत में होना फ़ना चाहता हूँ
अजब में दिवाना हूँ क्या चाहता हूँ।

चराग़ ए सुख़न हूँ जला चाहता हूँ
ग़ज़ल में नया फ़लसफ़ा चाहता हूँ।

रहा कब हूँ झूटी अना का में काइल
ख़ुदाया तिरी बस रज़ा चाहता हूँ।

सुख़नवर बहुत हैं अनोखे जहाँ में
में अंदाज़ अपना जुदा चाहता हूँ।

जुनूँ ने ख़िरद से ये क्या कह दिया है
तिरी हिकमतों का पता चाहता हूँ।

जहाँ भी रहे बस महकता रहे तू
फ़कत ये ख़ुदा से दुआ चाहता हूँ।

रहो ख़ुश्बुओं में गुलों की सहर तुम
कहाँ अब में ऐसी सज़ा चाहता हूँ।
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 716

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Afroz 'sahr' on September 18, 2017 at 4:40pm
आदरणीय समर साहब ग़ज़ल को आपकी सराहना मिली बड़ी बात है!आपका शुक्रिया अदा करता हूँ !आपके तमाम मशवरे बहुत ही मुफ़ीद हैं !ह्रदय से आभार प्रकट करता हूँ ! सादर,,,,,,
Comment by Samar kabeer on September 18, 2017 at 4:26pm
जनाब अफ़रोज़'सहर'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'अजब मैं दिवाना ये क्या चाहता हूँ'
इस मिसरे को अगर यूँ कर लिया जाये तो रवानी बढ़ जाएगी:-
"अजब मैं दिवाना हूँ क्या चाहता हूँ"

'चराग़-ए-सुख़न यूँ जला चाहता हूँ'
इस मिसरे में 'जला चाहता हूँ'से ये भाव आ रहा है कि जलाना चाहता हूँ,यानी आप जलाना चाहते हैं,जबकि ये बात चराग़ की तरफ़ से होगी तो 'जला'क़ाफ़िया ठीक होगा जैसे :-
'चराग़-ए-सुख़न हूँ जला चाहता हूँ' मिसाल के तौर पर 'इक़बाल'ने कहा था :-
'चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ'
'नहीं हूँ मैं क़ायल के झूटी अना का'
इस मिसरे में रवानी नहीं है 'के',शब्द भर्ती का है, इसे यूँ कर लें तो रवानी बद्व जायेगी :-
'रहा क़ब हूँ झूटी अना का मैं क़ाइल'
'सुख़नवर बहुत हैं अनोखे निराले'
इस मिसरे में 'अनोखे'और 'निराले'दोनों का अर्थ एक ही है, ये मिसरा यूँ किया जा सकता है :-
'सुख़नवर बहुत हैं निराले जहाँ में'

'रहो खुशबुओं में गुलों में 'सहर'तुम
इस मिसरे में 'ख़ुशबुओं में गुलों में' खटक रहा है,इस मिसरे को यूँ किया जा सकता है :-
'रहो ख़ुशबुओं में गुलों की 'सहर'तुम'
Comment by Afroz 'sahr' on September 18, 2017 at 1:57pm
आदरणीय नीलेश जी आपने ग़ज़ल को सराहा आपका शुक्रिया अदा करता हूँ !आपका मशवरा मुफ़ीद है ! सादर
Comment by Afroz 'sahr' on September 18, 2017 at 1:53pm
जनाब सलीम रज़ा साहब ग़ज़लमें शिरकत के लिए आपका मश्कूर हूँ !
Comment by SALIM RAZA REWA on September 18, 2017 at 12:37pm
अफरोज भाई ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारक़बाद.
Comment by Afroz 'sahr' on September 17, 2017 at 9:41pm
आदरणीय गिरीराज जी ग़ज़ल आपको पसंद आई ! ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ!आपका कहना बिल्कुल ठीक है! मैं ही होना चाहिए त्रुटि वश में टाइप हो गया है!सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 6:29pm

धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2017 at 6:12pm

आदरणीय अफरोज़ भाई खूब सूरत ग़ज़ल कही है आपने , शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें ।

 आ. जहाँ जहाँ मैं लिखना था वहाँ वहाँ आपने  में लिख दिया है .. दोनो के अर्थ मे बहुत फर्क है ... देख लीजियेगा ।

Comment by Afroz 'sahr' on September 17, 2017 at 6:10pm
मोहतरमा कल्पना जी आपने रचना को सराहा आभार प्रकट करता हूँ। मैं ही होना चाहिए टंकण त्रुटिवश में हो गया !सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 5:59pm

आदरणीय अफरोज जी ग़ज़ल अच्छी कही है , एक जगह एक उत्सुकता हुई है जानने की आपने 'अजब में दिवाना ये क्या चाहता हूँ।'
यहाँ में ही है या मैं होना चाहिए था ? कृपया अन्यथा न लीजियेगा ? क्या मात्रा गणना की वजह से में का इस्तिमाल हुआ है ?

सादर |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service