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लघुकथा "मजबूरियाँ"

म्याऊँ -म्याऊँ बहुत देर से एक करुण पुकार कानों में सुन कर अम्माँ खीज कर बोलीं ,अरी गिन्नी ,"ज़रा बाहर जाकर देखियो ये कौन सी चुड़ैल बिल्ली चिल्ला रही है ? मरी को डंडा मार के भगा दे ....। "अरे अम्माँ जी ये तो वही है जिसने कल ही छत पर पाँच सुंदर से बच्चे दिए हैं बिचारी भूखी है शायद ...",गिन्नी लगभग चीख़ती सी बोली । बिल्ली की प्रसवपीडा के बाद की स्थिति को सोच वह विह्वल हो उठी थी । अंदर आ अम्माँ से फिर बोली ,"अम्माँ इसे कुछ खाने को दे दूँ ,ज़रा पेट तो देखो काली नदी के किनारों की तरह सिमट कर मिल रहा है ।आजकल कहाँ शिकार और चूहे ...."मगर अम्माँ पसीजने के स्थान पर और ग़ुस्सा होती हुईं बोलीं ," गिन्नी कल से तू भी काम पे मत आइयो अगर तू इसे कुछ देना चाह रही है ,ये डायन है डायन , नासपीटी के आज कुल चार बच्चे ही बचे हैं ऊपर वाली किराएदारिन के बच्चे जाने क्या उलटा- सीधा कह रहे थे , क्या सच है भगवान ही जाने ! गिन्नी चुपचाप बर्तन साफ़ करने बैठ गई । बर्तनों में इतनी झूठन थी की एक क्या कई बिल्लियों के कुटुंब पल जाते । गिन्नी ने साफ़ व एक - दो कौर खाई रोटियों को चुपके से उठा कर अपने पल्ले में बाँध लिया घी लगी रोटी फेंकने की उसकी हिम्मत ना हुई । काम निबटाने के बाद जाते हुए वह फिर अपने अन्दाज़ में चीख़ती सी बोली ,"अम्माँ जी मैं जा रही हूँ।"हाँ ठीक है बस ज़रा दरवाज़ा ढुलकाती जा",अम्माँ ने नींद में से ही बेपरवाही से कहा ।
बिल्ली अभी भी भूखी इधर -उधर मुँह मार कुछ टटोलती सी डोल रही थी । गिन्नी ने उसे देखा तो उसका मन हुआ की आँचल में छिपा कर लाई रोटी उसे दे -दे पर अचानक ही उसके सामने अपने बच्चों का मलिन व भूख से बिलबिलाता चेहरा याद आ गया और वह अपनी करुणा को ख़ुद की ही झोली में डाल तेज़ -तेज़ क़दमों से अपने घरोंदे की ओर चल दी । उधर उस रात भी बिल्ली का एक और बच्चा कम हो गया ।
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Mamta on August 29, 2017 at 8:44am
आदरणीय रवि प्रभाकर जी आपकी इतनी सुंदर टिप्पणी हेतु हार्दिक आभार ! आपकी टिप्पणी मेरे लिए मूल्यवान है। मैं अपनी बात से पूर्णतः सहमत हूँ । आपकी ही तरह शीर्षक से मैं ख़ुद भी बड़ी असंतुष्ट हूँ मुझे कई सारे शीर्षक सूझे जैसे ममता,लाचारी ,विडम्बना,सोच व सच्चाई आदि- आदि मगर शायद थोड़ी जल्दबाज़ी में यही ( मजबूरी)रख कर लघुकथा प्रेषित कर दी।मुझे आगे से इस बात का भी ज़रूर ध्यान रखने की आवश्यकता है ।
सादर ममता
Comment by Ravi Prabhakar on August 28, 2017 at 9:22pm

आदरणीय ममता जी, लघुकथा में निहित 'ममता' जिस प्रकार उभर कर सामने आई है वह प्रशंसनीय है । विवशताजन्‍य कथित अच्‍छाई (आदर्शवाद) से आंखें मूंद लेने की प्रवृति एक सामान्‍य, सहज व स्‍वभाविक प्रवृति है। यह इस जिन्‍दगी का कटु यथार्थ है। इसके लिए आप बधाई की पात्र हो। क्षणिक आभास से अमिट प्रभाव की सृष्‍टि लघुकथा की विशिष्‍टता होती है जो भली भांति प्रेषित लघुकथा में दृष्‍टिगोचर हो रहा है । लघुकथा का शीर्षक 'मजबूरी' एक प्रचलित शीर्षक है । जिस प्रकार 'ममता' कथ्‍य प्रखरता से उभर कर आ रहा है उसके अनुसार तो लघुकथा का शीर्षक 'ममता' पर विचार किया जा सकता था। समग्रतय: इस प्रभावशाली लघुकथा हेतु आपको हार्दिक शुभकामनाएं । सादर

Comment by Mamta on August 23, 2017 at 11:02am
आदरणीय उस्मानीजी , मोहम्मद आरिफ़ जी ,समर कबीर जी आदरणीया प्रतिभा जी आप सभी का बहुत -बहुत आभारकि आपने मेरी लिखी लघुकथा को पढ़ा तथा सराहा इससे मुझे आगे लिखने के लिए मनोबल मिला है । आदरणीय उस्मानी जी आपके द्वारा दी गई सीख पर अवश्य ही भविष्य मे ज़रूर अमल करूँगी । इस लघुकथा में जाने क्यों मैं केवल सच्चाई ही सामने रखना चाहती थी । मेरा मानना है कि कभी कभी जब आप लोगों की आत्मा को जगाना चाहते हो और उनको दर्द के बारे में कुछ बताना चाहते हो तो तथ्य जैसे के तैसे ही रखने चाहिएँ । हमेशा सच्चाई चासनी में पगी हो ऐसी कोई आवश्यकता नहीं इस लघुकथा में अगर गिन्नी बिल्ली की मदद कर देगी तो आगे की वीभत्स लेकिन सच्ची बात छिप जाएगी और लोग उसे महसूस ही नहीं कर पाएँगे कि आगे क्या हुआ होगा । आदरणीय उस्मानी जी आपकी बात भी मुझे बहुत भायी है और आपका नज़रिया भी । पुनः धन्यवाद !
सादर ममता
Comment by pratibha pande on August 22, 2017 at 9:01am

बहुत अच्छी लघुकथा ... ममता का मर्म जिस तरह अंत में उभर कर आया  प्रभावित करता है ...हार्दिक बधाई आपको आदरणीया ममता जी 

Comment by Samar kabeer on August 21, 2017 at 10:14pm
मोहतरमा ममता जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on August 20, 2017 at 7:43am
आदरणीया ममता जी आदाब, एक तरफ पशु के बच्चे की भूख और दूसरी तरफ से पने स्वयं के बच्चे की भूख को प्रदर्शित करती बेहतरीन लघुकथा । आखिरकार मानव के बच्चे की भूख अपना हिस्सा हासिल कर ही लेती है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 19, 2017 at 6:57pm
बिल्ली की भूख और इंसान के बच्चों की भूख मिटाने की चिंता के बीच असमंजस को उभारती बढ़िया रचना का शिल्प आपकी बेहतरीन लेखनी का संकेत दे रहा है। सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय ममता जी। कई बार नेक इंसान को ऐसे समझौते या फैसले करने पड़ते हैं।लेकिन घर पहुंचने से पहले यदि वह बिल्ली की भूख मिटाती और अपने भूखे बच्चों के लिए कोई जुगाड़ के लिए विवश होती, तो रचना सकारात्मक रूप ले सकती थी।
बिल्ली के भूखे बच्चों पर मेरी भी एक लघुकथा "शरारत" मेरे आरंभिक अभ्यास के रूप में सोशल मीडिया पर अगस्त २०१५ में पोस्ट हुई थी। संभव हो, तो उसे पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराइएगा। ज़रा विस्तृत रचना हो गई थी ।

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