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शर्मीले लब ……….

शर्मीले लब ……….

ये मोहब्बत भी
अज़ब शै है ज़माने में
उम्र गुज़र जाती है
समझने
और समझाने में
हो जाती हैं
सांसें चोरी
खबर नहीं होती
नींद नहीं आती बरसों
उनके इक बार मुस्कुराने में

डूबे रहते हैं पहरों
इक दूजे के ख़्यालों में
गुज़र जाती शब्
इक दूजे से बतियाने में


राहे मोहब्बत में
जाने ये कैसे मुक़ाम आते हैं
दो ज़िस्म
इक जान हो जाते हैं
मैं और तुम के अहसास
कहीं फ़ना हो जाते हैं
मख़मली लम्हे
कुछ

और जवां हो जाते हैं
फिर

हौले से 
थरथराते लबों पे
शर्मीले लब
मेहरबाँ हो जाते हैं

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 570

Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 8, 2017 at 6:43pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब , सृजन पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on August 8, 2017 at 6:43pm

आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान साहिब आदाब , सृजन को अपने शीरीं अल्फ़ाज़ों से इज्ज़त बख़्शने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 8, 2017 at 6:43pm

आदरणीय मो. आरिफ साहिब सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 8, 2017 at 6:43pm

आदरणीय विजय निकोर जी सृजन को अपने स्नेहिल शब्द गंगा से अलंकृत करने का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on August 6, 2017 at 6:10pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा,सुंदर भावों से सजी इस कविता के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 6, 2017 at 4:08pm
मुहतरम जनाब सुशील सरना साहिब, मुहब्बत और ख़यालात में डूबी उम्दा रचना हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
Comment by Mohammed Arif on August 5, 2017 at 11:16pm
आदरणीय सशील सरना जी आदाब, ताज़गीपूर्ण भावों की बगिया । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by vijay nikore on August 5, 2017 at 6:48pm

// 

मख़मली लम्हे 
कुछ

और जवां हो जाते हैं 
फिर

हौले से 
थरथराते लबों पे 
शर्मीले लब 
मेहरबाँ हो जाते हैं//

वाह, वाह ,वाह ... क्या कहने, भाई सुशील जी, क्या ख्याल हैं !  दिल से बधाई आपको, आप ऐसे ही लिखते रहें।

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