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लघुकथा-कुत्ता संस्कृति

मॉर्निंग वॉक के दो मित्र कुत्ते आपस में बतिया रहे थे । उन्हें अपने कुत्तेपन पर बड़ा अभिमान हो रहा था । इंसान के गिरते निकम्मेपन पर ठहाके भी बीच-बीच में लगाते जा रहे थे । पहला कुत्ता बोला-"हमें अपने कुत्तेपन पर नाज़ है ।" तब दूसरा कुत्ता उछलकर बोला -"व्हाय नॉट । वी आर सो फेथफुल ।"
पहला-"हममें से कुत्तापन के संस्कार धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे है । हम तेज़ी से सभ्य हो रहे हैं ।"
दूसरा-"एब्सोल्यूटली ! अगली सदी हमारी ही होगी ।"
पहला-"बेशक! हमारा आधिपत्य बढ़ता ही जा रहा है । हमने इंसान के हर क्षेत्र पर अधिकार कर लिया है । एक दिन ऐसा भी आएगा जब वह हमारे सामने बेबस-लाचार दिखेगा ।"
दूसरा-"यस ! हम उसका कौन-सा काम नहीं कर सकते है । घर की रखवाली, वफादारी , छोटी-मोटी चीज़े लाकर देना, उसके साथ फुटबॉल खेलना,वॉलीबाल खेलना, गेंद लाकर देना, बच्चों के साथ खेलना, मनोरंजन करना आदि ।"
पहला-" हमने उसकी सारी ऐशो आराम की चीज़ों जैसे सोफा,पलंग बेडशीट, गद्दे को भी इस्तेमाल करते और बढ़िया-बढ़िया डिशेस का भी आनंद लेते हैं ।"
इतने में सामने से मॉर्निंग वॉक पर अपने-अपने कुत्तों को लिए शर्मा जी, मेहरा जी और डॉ. हर्ष आते दिखाई दिए । दोनों ने ज़ोर का ठहाका लगाया-"आहा !आहा !!हा .....हा...हा..हा...
कुत्ता संस्कृति ज़िंदाबाद ! कुत्ता संस्कृति ज़िंदाबाद!!"
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 9:39am

लघु कथा में चित्रण बहुत ही अच्छा हुआ है। बधाई, मोहम्मद आरिफ़ भाई।

Comment by Mohammed Arif on August 1, 2017 at 10:50pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीया मनीषा सक्सेना जी ।
Comment by Manisha Saxena on August 1, 2017 at 9:06pm

क़रारा व्यंग्य ,बड़ा अजा आया ,बधाई |

Comment by Mohammed Arif on August 1, 2017 at 1:30pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत-बहुत आभार ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 1, 2017 at 7:08am
बेहतरीन कटाक्ष भरी कथा..हार्दिक बधाई।
Comment by Mohammed Arif on July 29, 2017 at 11:28pm
आदरणीया नीता कसार जी लघुकथा में अपनी अमूल्य उपस्थिति देकर कृतार्थ करने का बहुत-बहुत आभार ।
Comment by Nita Kasar on July 29, 2017 at 9:37pm
कुत्तों को प्रतीक बना अच्छी कथा रची है पर ये दोनों मित्र सुशिक्षित है लगता है ।हालाँकि वफ़ादारी कुत्तों की बेमिसाल है बधाईँ आपको आद० मोहम्मद आरिफ़ जी ।
Comment by Mohammed Arif on July 27, 2017 at 10:25pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी । लेखन सार्थक हो गया ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 27, 2017 at 9:31pm
करारे कटाक्ष करती बढ़िया प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब।
Comment by Mohammed Arif on July 27, 2017 at 5:21pm
आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब लघुकथा पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया देने और हौसला अफज़ाई का बहुत-डहुत आभार ।

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