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यहाँ के लोग महब्बत शदीद करते हैं

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

ये काम आज के एह्ल-ए-जदीद करते हैं
ग़ज़ल के मुँह पे तमांचा रसीद करते हैं

लगे हुए तो हैं पैहम इसी तग-ओ-दौ में
हमें वो देखिये किस दिन शहीद करते हैं

ये नफ़रतें तो महज़ आरज़ी हैं,सच ये है
यहाँ के लोग महब्बत शदीद करते हैं

मुसालहत की अगर आरज़ू है तुमको भी
तो आओ बैठ कर गुफ़्त-ओ-शुनीद करते हैं

वफ़ा से दूर तलक जिन को वास्ता ही नहीं
ये लोग उनसे इसी की उमीद करते हैं

तू भूल से भी "समर" मेरा ज़िक्र मत करना
वो मेरे नाम से नफ़रत शदीद करते हैं

____

एह्ल-ए-जदीद :- नई बात लिखने वाले
तमांचा रसीद :- चाँटा मारना
पैहम :- मुसलसल
तग-ओ-दौ :- कोशिश
आरज़ी :- कुछ दिन के लिये
मुसालहत :- समझौता
गुफ़्त-ओ-शुनीद :- बात चीत
शदीद :- सख़्त

--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2017 at 11:16pm
आ. भाई समर जी इस सुन्दर गजल के लिए भहुत बहुत बधाई।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 10, 2017 at 11:07pm
बहुत ही शानदार और सीख देती हुई ग़ज़ल के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय..सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 10, 2017 at 3:01pm

आदरनीय समर भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने .. कहन में हम जैसों के सीखने के लायक बहुत कुछ है । आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

पर हाँ ... मतले के विचारों से मै सहमत नहीं हूँ ... लेकिन विचार आपकी स्वतंत्रता है ... कहन के लिये बधाइयाँ ।

 एक शेर कहने की कोशिश की है .. ज़दीद ..और रवायती गज़ल पर ..

हरेक चीज़ नयी हो गयी है ख़ुद की , तब

गज़ल रवायतों की बेड़ियाँ ही क्यूँ पहने ?

Comment by नाथ सोनांचली on July 10, 2017 at 1:53pm
आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब, बेहतरीन ,उम्दा और ग़ज़ल लेखन की प्रेरणा देती ग़ज़ल । हर शे'र बहुत कुछ कहता है । कुछ शे'र तो बहुत लाजवाब हैं-

ये काम आज के एह्ल-ए-जदीद करते हैं
ग़ज़ल के मुँह पे तमांचा रसीद करते हैं
मतले में बेहतरीन कटाक्ष के साथ एक इशारा भी

बहुत बहुत नमन वन्दन सँग मुबारकबाद पेश करता हूँ, सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on July 10, 2017 at 12:07pm
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 
Comment by Mohammed Arif on July 10, 2017 at 10:31am
आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब आदाब, बेहतरीन ,उम्दा और ग़ज़ल लेखन की प्रेरणा देती ग़ज़ल । हर शे'र बहुत कुछ कहता है । कुछ शे'र तो बहुत लाजवाब हैं-
ये नफ़रतें तो महज आरज़ी है, सच ये है
यहाँ के लोग महब्बत शदीद करते हैं ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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