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ग़ज़ल...कौन भरे इस खालीपन को

22 22 22 22
याद करे वीरान चमन को
कौन भरे इस खालीपन को

मुझमें है ये कौन समाया
आँखों ने टोका दर्पन को

हाथ बढ़ाकर कौन सँभाले
सड़कों पे मरते बचपन को

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
खाने को तैयार वतन को

अबके सावन ऐसे बरसे
ले आये सुख चैन अमन को

प्रभु बसते दुखिया आहों में
हम बैठे संगीत भजन को

कितने अरमानों से सींचा
'ब्रज' ने अपने फक्खड़पन को
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 3, 2017 at 9:31pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय जी..
Comment by vijay nikore on July 2, 2017 at 2:05pm

अच्छी गज़ल लिखी है। हार्दिक बधाई।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 1, 2017 at 8:43pm
बहुत बहुत आभार डा. साहब
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 1, 2017 at 4:11pm

हार्दिक बधाई भाई ब्रिजेश जी सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 29, 2017 at 12:06am
आदरणीय समर कबीर जी रचना पटल पे आपकी उपस्थिति सदैव प्रेरक होती है..पसंदगी के लिए एवं त्रुटि की और ध्यानाकर्षण करने के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ सादर
Comment by Samar kabeer on June 28, 2017 at 5:02pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
5वें शैर में क़ाफ़िया दोष है,सही शब्द है "अम्न" देखियेगा ।
Comment by Mohammed Arif on June 28, 2017 at 12:17pm
आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 28, 2017 at 11:00am
आदरणीय वर्मा जी ह्रदय की गहराइयों से आपका आभार..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 28, 2017 at 10:59am
अदरणीय शर्मा जी सुन्दर शब्दों के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन..सादर
Comment by Shyam Narain Verma on June 27, 2017 at 4:54pm
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर

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