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ग़ज़ल -फिक्र बनकर तिश्नगी अक्सर सवर जाती है रोज़ ।

2122 2122 2122 212(1)



फिक्र बनकर तिश्नगी अक्सर सँवर जाती है रोज़ ।
उस दरीचे तक मेरी सहमी नज़र जाती है रोज़ ।।

मुन्तजिर आंखे गवाही दे रही हैं इश्क़ की ।
आइने के सामने कितना निखर जाती है रोज़ ।।

सिम्त शायद है ग़लत उलझे हुए हालात हैं ।
है मुसीबत बदगुमां घर में ठहर जाती है रोज़ ।।

जिंदगी के फ़लसफ़े में है बहुत आवारगी ।
ठोकरें खाने की ख़ातिर दर बदर जाती है रोज़ ।।

यह उमीदों का परिंदा भी उड़े तो क्या उड़े ।
बेरुखी तो बेसबब पर ही क़तर जाती है रोज़ ।

कुछ दरिंदों की तबाही ,जुर्म जिंदाबाद है ।
आत्मा तो सुर्खियां पढ़कर सिहर जाती है रोज़ ।।

बन गया चेहरा कोई उसके लिए अखबार अब ।
पढ़ शिकन की दास्तां दिल तक खबर जाती है रोज़ ।।

दे रहा है वक्त मुझको इस तरह से तज्रिबा ।
आँधियों के साथ में आफ़त गुज़र जाती है रोज़ ।।

वस्ल की ख़्वाहिश का मंजर है सवालों से घिरा ।
देखिए साहिल को छूनें यह लहर जाती है रोज़ ।।

क्या कोई रिश्ता है उसका पूछते हैं अब सभी ।।
क्यूँ इसी कूचे से वो शामो सहर जाती है रोज़ ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मैलिक अप्रकाशित
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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 5:10pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल |

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on June 13, 2017 at 9:39pm

आदरणीय नविन मणि साहेब ......बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है ....बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Mohammed Arif on June 13, 2017 at 6:40pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 13, 2017 at 9:41am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी लाजबाब ग़ज़ल हुई है, एक से बढ़कर एक शेर , क्या बात है 

Comment by Naveen Mani Tripathi on June 12, 2017 at 9:59pm
bभी ब्रज जी विशेष आभार
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2017 at 8:05pm
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय..सादर

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