For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद - ( गिरिराज )

( अज़ीम शायर मुहतरम जनाब कैफ़ी आज़मी साहब की ज़मीन पर एक प्रयास )

221  2121   1221    212

मुझको कहाँ अज़ीज़ है कुछ भी चमन के बाद
क्या मांगता ख़ुदा से मैं हुब्ब-ए-वतन के बाद


तहज़ीब को जो देते हैं गंग-ओ-जमुन का नाम
ये उनसे जाके पूछिये , गंग-ओ-जमन के बाद ?


वो लम्स-ए-गुल हो, या हो कोई और शय मगर
दिल को भला लगे भी क्या तेरी छुवन के बाद


वो चिल्मनों की ओट से देखा किये असर
बातों के तीर छोड़ के हर इक चुभन के बाद

 

रहती है बेक़रार पर आती नहीं है धूप
मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद


ना आशना तू क्या हुआ ,सारा जहाँ मुझे
लगने लगा है आशना उस अंजुमन के बाद

 

ऐ मेरी नज़्म बोल क्या तू भी उदास है ?

ग़मगीन जैसे मैं हुआ , तर्क़े सुखन के बाद

****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 903

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 16, 2017 at 5:15pm

आदरणीय समर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार् ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 16, 2017 at 5:15pm

आदरणीय मो. आरिफ भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 7, 2017 at 10:17pm
रहती है बेक़रार पर आती नहीं है धूप
मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद.. बेहतरीन जबरजस्त..नमन है लेखनी को
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 7, 2017 at 8:41pm

ऐ मेरी नज़्म बोल क्या तू भी उदास है ?

ग़मगीन जैसे मैं हुआ , तर्क़े सुखन के बाद======== आ० अनुज इस सच्चे शेर ने  अवसन्न कर दिया , आ० सौरभ जी ने बिलकुल सही कहा .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2017 at 4:05pm

आदरणीय गिरिराज भाई साब एक से बढ़ कर एक शेर हुए है लेकिन इस बेहतरीन ग़ज़ल के ये शेर तो वाकई जितनी तारीफ़ की जाए कम है ..सादर प्रणाम के sath

तहज़ीब को जो देते हैं गंग-ओ-जमुन का नाम 
ये उनसे जाके पूछिये , गंग-ओ-जमन के बाद ?

वो चिल्मनों की ओट से देखा किये असर 
बातों के तीर छोड़ के हर इक चुभन के बाद

 

रहती है बेक़रार पर आती नहीं है धूप 
मेरा ग़रीब खाना है ऊँचे भवन के बाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 6, 2017 at 9:04pm

वाह्ह्ह वाह्ह्ह बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आद० गिरिराज जी दिल से दाद क़ुबूल फरमावें 

Comment by Samar kabeer on February 6, 2017 at 8:58pm
मित्रो,जनाब गिरिराज भंडारी जी इस वक़्त हैदराबाद में हैं,उसके बाद उन्हें बैंगलोर जाना है,मुझे उन्होंने अभी इत्तिला दी है कि मंच को इसकी सूचना देदूं वो 16 तारीख़ तक लौटेंगे,हमारी दुआ है उनका सफ़र कामयाब रहे ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2017 at 8:47pm
आदरणीय गिरिराज सर, क्या खूब गज़ल कही है आपने। लाज़वाब। दाद ही दाद दिल से।
Comment by डॉ पवन मिश्र on February 6, 2017 at 7:18am

आद. गिरिराज जी। क्या खूब ग़ज़ल कही आपने। शेर दर शेर मुबारकबाद। आकाश भर बधाई

Comment by दिनेश कुमार on February 6, 2017 at 6:56am
बहुत उम्दा ग़ज़ल सर। वाह वाह वाह
सभी शेर बहुत अच्छे हुए हैं।
इन्सां की ख़्वाहिशों की कोई इंतेहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिये दो गज़ कफ़न के बाद
मुबारकबाद।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service