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वादा .....

मेरे ग़मगुसार ने
इक वादा किया था
कि वो हर लम्हा
मेरा ज़िस्म होगा
मेरा हर ग़म
उस पे आशकार होगा
फ़ना की तारीक वादियों में भी
वो मेरे साथ होगा

क्या सच में उसने
इस जहां से
उस जहां तक
साथ निभाने का
वादा किया था

लम्हा दर लम्हा
दूरी का अज़ाब बढ़ता गया
अकेलेपन की शाखाओं पे
यादों का शबाब
बढ़ता गया


साये गुफ़्तगू करने लगे
मेरी अफ़सुर्दा निगाहें
जाने ख़ला में
क्या तलाशती थीं

मैं अकेला
चुप
बेज़ान

खामोश उफ़क में 
तलाशता रहा उसको
फ़लक में जो
चल दिया
मुझसे पहले
उस जहाँ में
जहां तक
साथ देने का
उसने वादा किया था

*ग़मगुसार =मित्र,आशकार=प्रकट ,अज़ाब=कष्ट ,
अफ़सुर्दा=उदास ,उफ़क़ =क्षतिज


सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 597

Comment

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Comment by Sushil Sarna on October 10, 2016 at 3:46pm

आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी प्रस्तुति आपकी आत्मीय सराहना से उपकृत हुई। 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 8, 2016 at 3:04pm
आदरणीय श्री सुशील सरना जी बहुत ही खूबसूरत और दिल की गहराईयों को छूती हुई रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Sushil Sarna on October 7, 2016 at 1:23pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन को आपकी आत्मीय प्रशंसा ने जो मान दिया है उसके लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 7, 2016 at 1:22pm

आदरणीय तस्दीक साहिब प्रस्तुति में निहित भावों को आपकी आत्मीय प्रशंसा ने जो मान दिया है  उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on October 7, 2016 at 1:20pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति को हौसला देते आपके अल्फ़ाज़ों ने बन्दे को जो इज्ज़त बख़्शी है उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 9:36pm

बहुत अच्छी रचना हुई है आपकी आदरणीय सुशिल जी | हार्दिक बधाई |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 6, 2016 at 8:46pm

मोहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , दिल की गहराईयो में उतरती और गज़ब का एहसास कराती सुन्दर कविता के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by Samar kabeer on October 6, 2016 at 8:33pm
जनाब सुशील सरना साहिब आदाब,बहुत नाज़ुक अहसासात को बहुत ख़ूबसूरती से अल्फ़ाज़ का जामा पहना दिया है आपने,इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on October 6, 2016 at 6:42pm

आदरणीय शिज्जु शकूर जी प्रस्तुति आपकी आत्मीय सराहना से उपकृत हुई।  फ़ना की तारीक वादियों में'' का मेरा अभिप्राय मौत की अंधेरी वादियों में '' से या मिट जाने के बाद की अंधेरी वादियों से था। कोई त्रुटि हो अवश्य सुझाव दें। आपका हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2016 at 5:46pm

आ. सुशील सरना सर अच्छी रचना हुई है बहुत बहुत बधाई,

एक बात 

//फ़ना की तारीक वादियों में भी

वो मेरे साथ होगा// आपके इस बयान का मतलब नहीं समझा

कृपया ध्यान दे...

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