For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1212 22

जुगनुओं की बरात मुश्किल है।
साथ हो कायनात मुश्किल है।।

चांदनी गर बिखर नहीं जाती
इन निगाहों से मात मुश्किल है।।

यूँ हकीकत छुपी नहीं रहती।
आईने से निजात मुश्किल है।।

रात के बाद निकलता है दिन।
कैसे कह दूँ हयात मुश्किल है।।

दो जहां को सवाँर दूँ तब भी।
इस जहां की बिसात मुश्किल है।।

फासले दरमियाँ न आ पाते।
चुगलियों से निजात मुश्किल है।।


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1003

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 2, 2016 at 5:08pm
आदरणीय कालीपद प्रसाद मण्डल जी रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद।सादर
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 2, 2016 at 5:05pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पसन्द करने के लिए धन्यवाद ,,,अभी सीख रही हु ,होसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया।सादर
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 2, 2016 at 5:01pm
आभार आदरणीय समर कबीर जी,रचना को समय देने और होसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया ,आपके सुझाव अनुसार चोथे शेर में काफ़िया ठीक करती हूँ,,,,
कृपया बताने का कष्ट कीजिये ये तक़ाबुल-ए-रदफ का दोष क्या होता है,,,,,
मैंने ग़ज़ल की पाठशाला से ही थोड़ा बहुत पढ़ कर ग़ज़ल लिखने की कोशिश की है,,,,इस दोष के बारे में ज्ञान नहीं है।सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 2, 2016 at 3:16pm

वाहह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल....बधाइयाँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 9:43am

आदरणीया अलका जी , बहुत अच्छी गज़ल हुई है हार्दिक बधाइयाँ । आदरणीय समर भाई जी की बातों का ख्याल कीजियेगा ।

Comment by Samar kabeer on October 1, 2016 at 3:01pm
मोहतरमा अलका जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
चौथे शैर में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ का दोष है ।
आखरी शैर में 'हालात'क़ाफ़िया मुनासिब नहीं,लय बाधित हो रही है,यहां "निजात" क़ाफ़िया ठीक रहेगा,अगर आप मुनासिब समझें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2016 at 1:37pm

ग़ज़ल पर प्रयास अच्छा है आ. अलका चंगा जी, एक- दो जगहों पर टंकण त्रुटि है ज़रा देख लीजिएगा

Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 30, 2016 at 5:33pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही  है  आपने आ. अलका चंगा जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service