For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वह 'हरामज़ादा' नहीं (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

माँ-बेटी दोनों अपने पुराने से घर के जंग लगे गेट पर लटके जंग लगे ताले को ग़ौर से देख रहीं थीं। ताले में चाबी लगाने वाली जगह पर एक नन्हा सा पौधा उग आया था, जो उनके कौतुक का कारण था।

अतीत की बातें सोचते हुए माँ ने अपना हाथ बढ़ा कर पौधे को उखाड़ना चाहा, तो बेटी ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा- "अब इसे भी क्या 'हरामज़ादा' कहोगी? यह हरामी नहीं, अपने नसीब का है!" यह कहते हुए उसने कहा - मैं भी इसे ज़िन्दगी जीने दूंगी!"

माँ की आँखों से आंसू छलक पड़े। बेटी बोली- हाँ अम्मा, मैं भी इसे गमले में लगा कर बड़ा होने दूँगी, जैसे तूने मुझे पाल-पोस कर बड़ा कर पढ़ाया लिखाया, बावजूद इसके कि लोग मुझे 'हरामज़ादी' कहते रहे!"

माँ ने बेटी को गले से लगा लिया।

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 759

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 27, 2016 at 6:18pm
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित होने व रचना के मर्म को अनुमोदित करते हुए अभ्यासरत रचनाकार को प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी, आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी व आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले साहब।
Comment by pratibha pande on July 19, 2016 at 8:17pm

'ताले में उगा हुआ  पौधा'  ये प्रतीक गजब का लगा ..बहुत सशक्त रचना ,,,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय उस्मानी जी  

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 18, 2016 at 3:38pm

सुन्दर लघुकथा आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब. सच है दुनिया में सभी को जीने का हक़ है. बहुत-बहुत बधाई. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 18, 2016 at 9:48am

वाह्ह्ह्ह आद० उस्मानी जी लघु कथा बहुत गंभीरता लिए हुए है ताले में उग आये अनचाहे पौधे के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया लघु कथा ने |आपको तहे दिल से बहुत- बहुत बधाई| 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 17, 2016 at 8:25am
आप सभी सुधीजन के मार्गदर्शन और हौसला अफ़ज़ाई से यह कोशिश यदि कामयाब हो सकी है, तो हम आगे भी और सुधार कर सकेंगे लेखन में। रचना पर समय देकर अनुमोदन करने व प्रोत्साहन देने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब डॉ. विजय शंकर साहब।
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 17, 2016 at 3:56am
तीन पंक्तियों में इतनी सुन्दर कथा , एक उत्कृष्ट कृति। बहुत बहुत बधाई ,आदरणीय शेख सहजाद उस्मानी जी , सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 16, 2016 at 10:07pm
स्नेहिल प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया जानकी बिष्ट वाही जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 16, 2016 at 10:06pm
इस रचना पर अपना अमूल्य समय देकर अनुमोदन करने व प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब समर कबीर साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 16, 2016 at 10:05pm
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर प्रथम त्वरित प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरमा राहिला साहिबा।
Comment by Janki wahie on July 16, 2016 at 2:54pm
नई सोच को समेटे हुए बहुत सार्थक कथा।आ.शहज़ाद जी हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
12 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
21 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service