For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मायाजाल ...

ये मकड़ी भी
कितनी पागल है
बार बार गिरती है
मगर जाल बुनना
बंद नहीं करती
बहुत सुकून मिलता है उसे
अपने ही जाल के मोह में
स्वयं को उलझाए रखने में
वो स्वयं को
वासनाओं के जाल में
लिप्त रखना चाहती है
शायद वो जानती है
जिस दिन भी वो
अपना कर्म छोड़ देगी
वो अपनी पहचान खो देगी
पाकीज़गी उसे मोक्ष तक ले जाएगी
लेकिन इस तरह का मोक्ष
कभी उसकी पसंद नहीं होता
उसे तो अपनी वही दुनियां पसंद है
जिसे उसने अपनी
आपूरित वासनाओं की पूर्ती के लिए
जाल के रूप में सृजित किया है
इसीलिये वो बार बार गिर के भी
अपनी दुनिया को बुनती है
वो चाहती है कि ग़र
उसका आगाज़ ये मायाजाल है तो
अंत भी यही मायाजाल हो

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 762

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on June 15, 2016 at 7:20pm

आदरणीय    गिरिराज भंडारी      जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय देने का हार्दिक आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 5:09pm

आदरणीय सुशील सरना भाई , इंसानी प्रवृत्ति को मकड़ी के सापेक्ष रख कर बहुत सही बात कही आपने ! हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Sushil Sarna on June 14, 2016 at 8:40pm

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker     जी प्रस्तुति के भावों पर आपकी  मन मुदित करती प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on June 14, 2016 at 8:38pm

आदरणीया प्रतिभा जी प्रस्तुति में समाहित गहन भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2016 at 8:38pm
अपना अपना मायाजाल सभी को पसंद आता है , आदरणीय सुशील सरना जी , इस खूबसूरत , अलग सी रचना के लिए हार्दिक बधाई , सादर।
Comment by pratibha pande on June 14, 2016 at 7:30pm

उसे तो अपनी वही दुनियां पसंद है 
जिसे उसने अपनी 
आपूरित वासनाओं की पूर्ती के लिए 
जाल के रूप में सृजित किया है 
इसीलिये वो बार बार गिर के भी 
अपनी दुनिया को बुनती है ....सांसारिक मायाजाल हम स्वयं बुनते हैं और अपनी इच्छा से उसमे फंसे रहना चाहते हैं ..इन भावों के साथ ये अनुपम सृजन है आपका आदरणीय    हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको 
 

Comment by Sushil Sarna on June 14, 2016 at 3:45pm

आदरणीय  kanta roy जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by kanta roy on June 14, 2016 at 1:23pm

बहुत सुकून मिलता है उसे 
अपने ही जाल के मोह में 
स्वयं को उलझाए रखने में ----अद्वितीय सम्प्रेष्ण है यहाँ  मकड़ी के पागल होने के भावों में . बहुत-बहुत बधाई .

Comment by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 7:14pm

आदरणीय  Sheikh Shahzad Usmani     जी प्रस्तुति के भावों पर आपकी  मन मुदित करती प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on June 13, 2016 at 7:13pm

आदरणीय   Rajendra kumar dubey      जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय देने का हार्दिक आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service