For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भूखी रचनाएँ और वेक अप कॉल (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

क़ुरैशी साहब की रचनाएँ संभाग से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं थीं, लेकिन दूसरे साथी लेखकों की प्रकाशित रचनाओं, संग्रहों और उनको मिलने वाले छोटे-बड़े सम्मानों से वे बहुत विचलित रहा करते थे। प्रकाशन की भूख उन्हें बहुत सताया करती थी, पर क्या करें न तो आर्थिक स्थिति अच्छी थी और न ही कोई सहारा। बहुत से सम्पादकों से मधुर संबंध होने के बावजूद जब कभी उनकी रचनाएँ अस्वीकृत हो जातीं, तो उनकी नींद हराम हो जाती थी। इस बार तो एक पत्रिका के संपादक को लम्बी सी शिक़ायती ई-मेल भेज दी। कोई उत्तर न मिलने पर आज सीधे सम्पादक महोदय से फोन पर सम्पर्क कर ही लिया। उनका लम्बा भाषण सुनने के बाद सम्पादक महोदय ने उनसे कहा:

"क़ुरैशी साहब, आपके द्वारा भेजी गई रचनाओं का हम या हमारा प्रकाशन क्या करता है या क्या करना चाहिए, उस पर प्रश्न चिन्ह लगाने से पहले कई बार अपनी रचनाओं को पढ़ा करें, सोचा करें,भाई!"
"आप सोचते हैं कि हम ऐसा नहीं करते क्या? आप दूसरों को तवज्जो देकर छापते ही जा रहे हैं, मेरी रचनाएँ उनसे कमतर हैं क्या?" क़ुरैशी साहब ने कुछ ऊँची आवाज़ में कहा।
"मुझे आपसे क्या और क्यों कर खुन्नस होगी?"
" तो फिर आपने मुझे पत्रिका के विशेषांक से किक आउट क्यों किया?"
"आश्वस्त रहें ये कतई किक आउट नहीं है, केवल वेक अप काल हैI एक रिजेक्शन से ये हाल है तो खुद की रचना को रिजेक्ट करने का हुनर कब सीखोगे, क़ुरैशी साहब?" सम्पादक महोदय ने विनम्रता से समझाते हुए कहा। 
अधिक छपने की भूख भूल गए क़ुरैशी साहब और अपनी अस्वीकृत भूखी रचनाओं को निहारने लगे।

[मौलिक व अप्रकाशित]

Views: 1043

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 4, 2016 at 7:33am
रचना पर समय देकर उत्साहवर्धक टिप्पणी करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहब और आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।
Comment by Samar kabeer on June 3, 2016 at 3:03pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by pratibha pande on June 2, 2016 at 9:27pm

आपकी ये रचना, रचनाकर्म  के सन्दर्भ  में कई बिन्दुओं  को उजागर कर रही है जो  कुछ  कटु होते हुए भी सत्य हैं , बधाई प्रेषित है आपको  इस सार्थक रचना कर्म के लिए आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 2, 2016 at 8:52pm
जी बिलकुल आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी। यह भी सीखने की बात है, आपने सिखायी, इस ताक़ीद के लिए तहे दिल बहुत बहुत शुक्रिया। कृपया जहाँ कहीं मुझसे यह त्रुटि हो गई हो , कृपया क्षमा कीजिएगा। वैसे मैंने पूरी सावधानी बरती है कि ऐसा मेरी विगत दो दिनों की अन्य टिप्पणियों में ऐसा न हो।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2016 at 3:36pm

यदि तमाम पाठकों के बीच किसी एक को इंगित कर कोई बात कहनी हो तो उन पाठक का नाम अवश्य अंकित कर दें आदरणीय. अन्यथा, आपकी विन्दुवत टिप्पणी या प्रतिक्रिया भी सामान्यीकरण (Generalization) की शिकार होकर प्रतिवाद का कारण बन जायेगी. यह संप्रेषणीयता के लिहाज से बहुत ही बड़ा दोष है. जो पात्र नहीं हैं वे भी लपेटे में आ जाते हैं. जैसा कि आप देख रहे हैं. 

सादर शुभेच्छाएँ

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 2, 2016 at 3:28pm
सादर निवेदन है कि रचना के अंतिम संवाद में /वेक अप काल/ को कृपया /वेक अप कॉल/ पढ़ियेगा। यदि संभव हो तो यह शब्द प्रतिस्थापित कर दीजिएगा।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 2, 2016 at 3:18pm
रचना का अनुमोदन करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कल्पना भट्ट जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 2, 2016 at 3:14pm
मार्गदर्शन के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी। दरअसल ये पंक्तियाँ मैंने आदरणीय सुनील वर्मा जी की टिप्पणियों को पढ़कर कहीं थीं। उनका नाम वहां देना भूल गया था। अापकी टिप्पणी में बताई गई बातों/ताक़ीद/सबक़ पर अमल करूँगा। सादर हार्दिक धन्यवाद।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 2:31pm

अच्छी बात कही है आदरणीय शहजाद भाई |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2016 at 2:16pm

// 'भूखी रचना' से मेरा आशय है ऐसी रचना जिसमें अभी कुछ कमियां/ख़ामियां रह गईं हैं और जो अपने रचाकार से बेहतर शिल्प,तथ्य या कथ्य की ख़ुराक चाह रही हैं लेकिन रचनाकार अनजान सा बनकर उन्हें ऐसी ही अवस्था में यहाँ-वहाँ प्रकाशित कराने के यत्नों में लगा हुआ है। //

आपको क्या लगता है कि बिना इस तथ्य का खुलासा हुए या कायदे से समझे हमने या अन्य पाठकों ने टिप्पणी की है, आदरणीय शेख शहज़ाद  उस्मानी जी ? 

वस्तुतः लेखन जबतक सीख के लिए न हो बहुत अधिक विवेचना वैचारिकता को कमज़ोर कर देती है. इसे रचनाकर्म में अनावश्यक शाब्दिकता कहते हैं. यदि मात्र टिप्पणी के लिए या किसी की टिप्पणी पर अपनी बलात प्रतिक्रिया देनी हो तो बात अलग है. लेकिन सुधी लेखन इन तथ्यों को ताड़ जाता है. कैसे किसी बात को कहना है, किस बात को नहीं कहना है, जिसे कहना है उसे कितना कहना है जैसी समझ भले सापेक्ष हों, अर्थात व्यक्ति-व्यक्ति के अनुसार बदलते रहते हों, लेकिन इनकी अहमीयत अवश्य है. हर पाठक अपनी समझ के अनुसार ही रचना को समझता और स्वीकारता है. उसकी समझ की सीमा के बाहर की अत्युत्तम और संयमित रचना भी उसके लिए हाशिये पर की रचना की प्रतीत होती है.  और वह उनमें अपनी उसी ’समझ’ से कमी ढूँढता फिरता है. मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि प्रश्न करना या कमियों के प्रति इंगित करना कोई दोष है. बल्कि ऐसा करने से ही समझ बढ़ती भी है. लेकिन प्रश्न करने के क्रम में व्यापी हुई उच्छृंखलता को अनुभवी चट से ताड़ लेते हैं इसमें भी शक नहीं है. यही कारण है कि जिन पंक्तियों को मैंने उद्धृत किया है वे अपनी रचना की अनावश्यक व्याख्या लगी है. किसी रचनाकार को इस प्रक्रिया से अवश्य बचना चाहिए. जबतक कि कुछ सुधीजन आग्रह न कर बैठें. या पाठकों की दशा और व्यवहार से इसकी नितांत आवश्यकता ही जान पड़े. मैं आपकी इस प्रस्तुति के सापेक्ष ऐसा कोई आग्रह, ऐसी कोई दशा या ऐसा कोई व्यवहार नहीं देख रहा हूँ. 

विश्वास है, आपको मेरा कहा स्पष्ट हुआ या हो रहा होगा.

शुभेच्छाएँ. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service