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सुधि आँगन ....

याद  आये  वो   बैन   तुम्हारे
तृषित नयनों का सिंगार हुआ

संग समीर के
उलझी अलकें
स्मृति कलश से फिर
छलकी पलकें

याद  आये  वो  अधर तुम्हारे
फिर मूक पल हरसिंगार हुआ


स्मृति मेघों की
निर्मम गर्जन
देह कम्पन्न का
करती अभिनन्दन


याद आये वो स्पर्श तुम्हारे
आलिंगन क्षण अंगार हुआ


जब देह से देह की
गंध मिली
तब स्वप्निल पवन
मकरंद चली

याद आये वो गीत तुम्हारे
सुरभित नीरव संसार हुआ


श्वास का श्वास से
मेल हुआ
शुरू तृप्ति का अदभुत
खेल हुआ

याद   आयी  कजरारी  पलकें
सुधि आँगन में हाहाकार हुआ

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on May 2, 2016 at 5:04pm

आदरणीय सौरभ सर प्रस्तुति आपकी स्नेहिल एवं सुझावात्मक प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। भविष्य में इंगित बातों का ध्यान रखूंगा। हार्दिक आभार सर। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 3:56pm
आदरणीय सुशील सरनाजी, यह प्रस्तुति गीतके करीब अवश्य हुई है. शृंगारिक भाव भी हैं लेकिन रुचिकर नहीं लगी. कई शब्द मोह में प्रयुक्त हो गये हैं. जिनसे रचना के पूर्ण अर्थ में कोई सार्थकता नहीं आती. उन शब्दों पर आपकी दृष्टि अवश्य होगी.
विश्वास है, गीत लेखन में भाव की अभिव्यक्ति को मान देने की कोशिश करेंगे.
शुभेच्छाएँ
Comment by Sushil Sarna on April 27, 2016 at 4:45pm

आदरणीय    Shyam Narain Verma   जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Shyam Narain Verma on April 27, 2016 at 4:12pm
इस खूबसूरत  रचना की हार्दिक बधाई | सादर 
Comment by Sushil Sarna on April 27, 2016 at 12:11pm

आदरणीय   narendrasinh chauhan  जी प्रस्तुति पर आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 27, 2016 at 12:10pm

आदरणीय  सुरेश कुमार 'कल्याण'    जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by narendrasinh chauhan on April 27, 2016 at 11:45am

खूब सुन्दर रचना 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 27, 2016 at 10:42am
आदरणीय सुशील सरना जी बहुत ही सुन्दर एवं श्रृंगार युक्त शब्द चयन बधाई हो

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