For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वे,
जो कभी थे निकट,
प्राणों की तरह।
धड़कते थे हर क्षण,
श्वास- प्रश्वास के साथ।
थे तो सहोदर ही,
पर अब- - - -
वे बहुत दूर ...दूर हो गए।
और जो दूर ... थे
उनकी दूरी भी , नापना दूभर है। ।


प्राणहीन जर्जर जीवन को
अपनाया एकान्त ने।
अपनी अद्भुद्ता की व्यापकता से
मोह लिया ऐसे,
कि अब, वही मेरा सगा है।
बाकी सब ने, मनमाना ठगा है। ।


शून्य को पाकर मैं,
बन गया, मालिक विराट का।
लुटाने को कितना हूँ उत्सुक,
खजाना ललाट का।
पर,
जब सबकुछ था तथाकथित
तब,
बटोरने की इच्छा थी और और।
अब,
कुछ भी नहीं है, तो .. सब कुछ लुटाने की चाह है। ।

पहले ,
लोग मांगते न थकते और
मैं,
देने में था हिचकता।
बकबकाता, तमतमाता।
अब,
भिखारी भी बिचकते हैं,
और मैं - - -
हूँ उन्हें पुकारता ..
बुलाता फिरता ..। ।

23 जनवरी 1990
मौलिक व् अप्रकाशित

Views: 459

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr T R Sukul on April 12, 2016 at 3:17pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी, रचना की प्रशंसा करने के लिए विनम्र आभार। 

Comment by रामबली गुप्ता on April 10, 2016 at 1:55pm
गहरे भावों की अभिव्यक्ति लिए बेहतरीन अतुकांत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुकुल जी।
Comment by Dr T R Sukul on April 9, 2016 at 6:30am

आदरणीय सौरभ पांडेय जी, रचना पर आपकी प्रेरणास्पद उपस्थिति और सारस्वत टिप्पणीं के लिए विनम्र आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2016 at 11:59pm

गहरी सोच और वर्तमान की कुदशा को अभिव्यक्त करती सार्थक रचना केलिए हार्दिक् बधाई आदरणीय टीआर सुकुल जी. 

Comment by Dr T R Sukul on April 8, 2016 at 10:15pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी , रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रोत्साहक टिपण्णी के लिए विनम्र आभार।

Comment by Dr T R Sukul on April 8, 2016 at 10:14pm

आदरणीय डॉ गोपालनारायण श्रीवास्तव जी , रचना पर आपकी उपस्थिति और भावो की अभिव्यक्ति प्रेरणा देती है , सादर विनम्र आभार ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 5, 2016 at 6:23pm

शून्य को पाकर मैं,
बन गया, मालिक विराट का। 
लुटाने को कितना हूँ उत्सुक, 
खजाना ललाट का। 
पर, 
जब सबकुछ था तथाकथित 
तब, 
बटोरने की इच्छा थी और और।
अब, 
कुछ भी नहीं है, तो .. सब कुछ लुटाने की चाह है। । ० वाह  ! सब कुछ  शुन्य  से सी  प्रारम्भ  और शुन्य पर ही समाप्त  होता है | सुंदर रचना  के  लिए  बधाई  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2016 at 9:49am

आ० प्रारम्भ बहुत अच्छा है  पर फिर ज्यों ज्यों आगे बढ़ते गए त्यों त्यों -----. थोड़ा श्रम और अपेक्षित था.  सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय यमित जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें"
5 seconds ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीया ऋचा जी अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें"
1 minute ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, आपकी इस इज़्ज़त अफ़ज़ाई के लिए आपका शुक्रगुज़ार रहूँगा। "
52 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ भाई आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी ठीक है *इल्तिजा मस'अले को सुलझाना प्यार से ---जो चाहे हो रास्ता निकलने में देर कितनी लगती…"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । ग़ज़ल तक आने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः । "गिर के फिर सँभलने…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service