For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Dr T R Sukul's Blog (25)

लघुकथा

लखूचंद 

=====

एक दिन कालेज के कुछ युवक लखूचंद के सामने ही उसकी जमकर तारीफ कर रहे थे ,

‘‘‘ अरे ये तो लखूचंद के एक हाथ का कमाल है , दोनों हाथ होते तो पूरे जिले में मिठाई के नाम पर केवल इन्हें ही जाना जाता। लेकिन यार , ये तो बताओ कि दूसरा हाथ क्या जन्म से ही ऐसा है या बाद में कुछ हो गया ?‘‘

बहुत दिन बाद लखूचंद को अपनी जवानी के दिन याद आ गए, बोले ,



‘‘ युवावस्था में मैं यों ही बहुत धनवान होने का सपना देखा करता । पिताजी कहते थे कि मैं उनकी हलवाई की दूकान सम्हालूं…

Continue

Added by Dr T R Sukul on March 26, 2017 at 11:54am — 1 Comment

लौकी (लघुकथा)

‘‘ अरे, सेठजी ! नमस्कार। अच्छा हुआ आप यहीं सब्जी बाजार में मिल गए, मैं तो आपके ही घर जा रहा था। समाचार यह है कि महाराज जी पधारे हैं, उनका कहना है कि इस एरिया में अहिंसा मंदिर का निर्माण कराना है जिसमें आपका सहयोग... ..।‘‘

‘‘ जी बिलकुल ! मेरी ओर से ग्यारह हजार , शाम को आपके पास पहुॅंचा दूॅंगा।‘‘

यह सुनकर, सब्जी का थैला टाॅंगे सेठजी के शिष्यनुमा नौकर से न रहा गया वह बोला,

‘‘सेठजी ! अभी आपने सब्जी की दूकान पर लौकी लेते समय लम्बी बहस के बाद, पूरे बाजार में बीस रुपये प्रति किलो…

Continue

Added by Dr T R Sukul on March 6, 2017 at 10:00pm — 12 Comments

केवल तुम

51

केवल तुम

=======

मैं बार बार मन ही मन हर्षित सा होता हॅूं,

हर ओर तुम्हारा ही तो अभिनन्दन है।

मन मिलने को आतुर फिर भी कुछ डर है सूनापन है,

हर साॅंस बनाती नव लय पर संगीत अनोखी धड़कन है,

अब तो हर द्वारे आहट पर तेरा ही अवलोकन है,

मैं इसीलिये नवगीत कंठ करता रहता हॅूं

हर शब्द में बस तेरा ही तो आवाहन है।

मन की राह बनाकर इन नैनों के सुमन बिछाये हैं,

मधुर मिलन की आस लिये ये अधर सहज मुस्काये हैं,

हर पल बढ़ते संवेदन…

Continue

Added by Dr T R Sukul on November 26, 2016 at 12:45pm — 6 Comments

प्रदूषण

151  प्रदूषण



जिंदगी जन्म से डूबी थी अश्रुसागर में,

अब तो लहरों के भंवर और भी गहरा रहे हैं!!



सांस की आस ले बाहर की ओर झाॅंका तो,

प्रदूषण की भभक से ही चेतना थर्रा गई।

डूबती उतरा रही नव कल्पनायें भी

घड़कते घड़घडाते घोष से घबरा गई।

विषैले गगनभेदी विकिरणों के दीर्घ ध्वज लहरा रहे हैं!!



स्वार्थी अर्थलोलुप वणिकवृत्ति व्याप्त घर घर में

मनुष्यता हर मनुज से दूर, कोसों दूर पाई।

परस्पर निकटतम संबंध भी दूषित विखंडित,

आत्मीयता, भ्रातृत्व और…

Continue

Added by Dr T R Sukul on August 7, 2016 at 3:18pm — No Comments

भावजड़ता

165

भावजड़ता

========

अहंमन्यता की तलैया में

मूर्खता की कीचड़ से जन्म ले

ए भावजड़ता !

तू कमल की तरह खिलती है।



अपने आकर्षण के भ्रमजाल में

उलझाती है ऐसे,

कि सारी जनता

लहरों पर सवार हो बस तेरे गले मिलती है।



झूठ सच के विश्लेषण की क्षमता हरण कर

आडम्बर ओढ़े, गढ़ती है नए रूप।

धनी हों या मानी, गुणी हों या ज्ञानी

तेरे कटाक्ष से सब होते हैं घायल

क्या साधू क्या फक्कड़ , बड़े बड़े भूप।



भू , समाज और भूसमाज भावना…

Continue

Added by Dr T R Sukul on July 5, 2016 at 11:23am — 10 Comments

अच्छे दिन!

94

अच्छे दिन!

------------

राहु कुपित हैं या शनि की महादशा का प्रभाव

मंगल विमुख हैं या गुरु की कृपा का अभाव,

कितनी दयनीय दशा है...... ! ! !

अनिरुद्ध कालचक्र कैसा फंसा है!

विवेचना .... थकती है, कथनी.. रुकती है,

रूखी सूखी सी लगातार....साॅंस..... बस, चलती है ! ! !



घर - बाहर , बाजार - बीहड़, दिन - रात,

अन्तर्वेदना, करुणा, निराशा के आघात,

नियामक ने व्युत्क्रम स्वरूप तो लिया नही !

अदभुद् विकल्पों को आधार मिला नहीं !…

फिर भी.... ये…

Continue

Added by Dr T R Sukul on June 4, 2016 at 11:24pm — 6 Comments

घर

166
लोहा ईंट और कंक्रीट का 
व्यवस्थित संग्रह , या
बाॅंस और मकोर के तने की कमानी पर
सागौन के पत्तों का विग्रह?
संगमर्मर और मोजेक से चमकते फर्श पर 
सजे फर्नीचर, कालीन व अन्य चीजें,
या
पीली मिट्टी  और गोबर से लिपे
समतल, चैकोर या गोल गोल भूमि तल,
कामकाजी वस्तुओं को  बाहों में लिये
आॅंगन के किनारे लगे आम पर गाती कोयल?
केवल रात काटने के लिये एकत्रित…
Continue

Added by Dr T R Sukul on May 17, 2016 at 11:00pm — 10 Comments

ये गठरी!

165

ये गठरी!

======

ये गठरी!

कब होगी हलकी,

परायों के समानार्थी,

अपनों के कर्ज से छलकी!

मूलाॅंश को पटाने की

योजना बनाई मैंने,

तत्क्षण,

अपनी अपनी व्याज दर बढ़ाई इन्होंने।

जिंदगी की रेलगाड़ी,

कभी पा न सकी पटरी!

कुछ लोग,

सुखपूर्वक जीते हैं,

कर्ज लेकर भी घी पीते हैं!

और,

चुकाने के नाम पर---

देते हैं धमकी!

सुख! क्या है?

क्या पता।

घर! क्या है?

नहीं सकता बता।

किराये की…

Continue

Added by Dr T R Sukul on April 25, 2016 at 6:19pm — 6 Comments

शून्य

वे,

जो कभी थे निकट,

प्राणों की तरह।

धड़कते थे हर क्षण,

श्वास- प्रश्वास के साथ।

थे तो सहोदर ही,

पर अब- - - -

वे बहुत दूर ...दूर हो गए।

और जो दूर ... थे

उनकी दूरी भी , नापना दूभर है। ।



प्राणहीन जर्जर जीवन को

अपनाया एकान्त ने।

अपनी अद्भुद्ता की व्यापकता से

मोह लिया ऐसे,

कि अब, वही मेरा सगा है।

बाकी सब ने, मनमाना ठगा है। ।



शून्य को पाकर मैं,

बन गया, मालिक विराट का।

लुटाने को कितना हूँ…

Continue

Added by Dr T R Sukul on April 4, 2016 at 4:30pm — 8 Comments

आस

74

आस

===

पलकों भरे प्यार को हम

नित आस लगाये रहे देखते,

मुट्ठी भर आशीष के लिये

कल, कल कहकर रहे तरसते,

कल की जिज्ञासा ले डूबी सारा जीवन

हम हाथ मले बेगार बटोरे रहे तड़पते।।



तिनके ने नजर चुराई ऐंसी,

हम मीलों जल में गये डूबते,

विकराल क्रूर भंवरों में फिर,

बहुविधि क्रंदन कर रहे सिसकते,

सब आस साॅंस में सूख गयी,

हम तमपूरित जलमग्न तहों में रहे भटकते।।



संरक्षण भी जो मिला हमको,

निर्देशों की बौछार लिये,…

Continue

Added by Dr T R Sukul on March 26, 2016 at 3:14pm — 4 Comments

मेरी प्यारी व्यथा

115

मेरी प्यारी व्यथा

===========

खपरैल से निर्विघ्न आती

वर्षा की अनुपम फुहारों से,

आर्द्रशीत अनिल ने, भिगोया था तनमन अपना।

मेंढकों की सी जिंदगी में उस दिन...

अपनी 'भुजा की तकिये' के नीचे से आता,

बड़े चाव से, तुम्हारा--- स्वर सुना।



गुंजरित बसंत कहीं पल्लवित वसुंधरा

स्वतंत्र कामना समूह के अनोखे जाल में

बटोरे थी, आकर्षक संन्निधि अपनी,

'बक मीन दर्शन' की दशा को ,

चित्त दे, सौरभ विखेरते शशांक में,

भूख प्यास भूल, तुझे पल पल…

Continue

Added by Dr T R Sukul on February 21, 2016 at 4:49pm — 4 Comments

बासन्ती गन्ध

बासन्ती  गन्ध

-----------

सोचा था,

उस पार ,

शान्त निर्विघ्न क्षणों में,

पहुंच,

तुम्हारी मधुरस्मृति को सतत करूंगा।।



अलसाये ललचाये मन की तृप्ति हेतु,

नवकल्पित स्वरूप में,

खुद को व्यथित करूंगा।।



पर हाय! निठुर इस विपुल पवन के

तीक्ष्ण शूल,

ले आये,

 बासन्ती  गन्धयुक्त मधु झरित फूल।।



रह गया भ्रमित इस पार,

प्रिये!

उस पार.…

तुम्हारी याद रही.…

अब बतलाओ ,

मैं,

मधुर तुम्हारे…

Continue

Added by Dr T R Sukul on February 5, 2016 at 3:00pm — 15 Comments

कवच और कुण्डल

152
कवच और कुण्डल
---------------------- 
संसार  के जीर्णतम प्राणी से भी भयाक्रान्त वह,
जीवन सम्हाले है क्यों कि ,
उसके वक्षस्थल पर दुर्भाग्य का कवच 
और कानों में विपन्नता के बाले हैं।
तिरस्कार ,घृणा और उपहास का,
जन्मजात.....
साम्राज्य पाकर भी,
अपनत्व की , कुछ  साॅंसों की आस पाले है।
ग्रीष्म, वर्षा और शीत का मनमीत
अंतहीन अंबर है घर का छत…
Continue

Added by Dr T R Sukul on January 27, 2016 at 10:19am — 12 Comments

विद्वान बढ़ते जा रहे हैं

168
विद्वान बढ़ते जा रहे हैं
=============
जनगोष्ठियों या जन सभाओं में,
वक्ता अगण्य होते हैं।
कुर्सियाॅं सब भरी होती हैं पर, श्रोता नगण्य होते हैं।
प्रायोजित की गई भीड़ में
स्वयं थपथपाते वक्ता अपनी पींठ,
होड़ रहती है अधिकाधिक बोलने की।
इसलिये,
सुनना अनसुना कर अन्य सभी सोते हैं।
पुराणकार ‘व्यासजी‘, जब ज्ञान बघारने पहुॅंचे भीड़ में,
तो उन्हें किसी ने…
Continue

Added by Dr T R Sukul on January 21, 2016 at 5:36pm — 2 Comments

किसे कहें विदा और करें किसका स्वागत जतन।

200

वही रवि, वही किरण, 

वही धरा, वही गगन,

शीत के पुनीत कर्म में जुड़ा वही पवन।

 

वही रजनी, वही दिवा, 

वही संध्या , वही उषा,

मयंक भी भटक रहा लिये सतत जिजीविषा।

 

पुरा वही, वही नया , 

कहें सभी नया, नया,

बदल रहे हैं मात्र अंक, बदल रही सतत प्रभा।

 

इसी गणन में अटका मन 

निहारता रूपान्तरण,

किसे कहें विदा और करें किसका स्वागत जतन।

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

०१ जनवरी…

Continue

Added by Dr T R Sukul on January 1, 2016 at 9:00am — 6 Comments

दीवार

दीवार
====
बड़ा गहरा नाता है
तुम्हारा,
इन आॅसुओं से!
और इन आॅंसुओं का,
तुमसे!

मुझसे भी अधिक , तुम
इन्हें ही चाहते हो।

शायद इसीलिये....
जब तुम नहीं आते
ये,
अवश्य आ जाते हैं।

और जब
तुम आ जाते हो
ये,
तब भी निर्झर से
झरते हैं।

हमारे बीच. ..
अर्धपारदर्शी ,
दीवार बनते हैं!!

डॉ टी आर शुक्ल
7 नवंबर 2013
मौलिक व अप्रकाशित

Added by Dr T R Sukul on December 21, 2015 at 11:37am — 4 Comments

जुगुप्सा

खुशियाँ उनकी ,

आतिशवाजी की तरह छूती हैं , आसमान।

फुदकती हैं, फब्बारों सी, और 

उनके अट्टहास में, अनजान, भी होते…

Continue

Added by Dr T R Sukul on December 4, 2015 at 4:30pm — 10 Comments

व्यथा

29

आँखों में भय लिये

आज्ञाकारिता तय किये,

क्षुधोदर की भूले

बड़ी देर के बाद बैठ पाया था।

कंपायमान हाथों से

चलायमान श्वासों से ,

भुंजे हुए महुओं की छोटी सी

पोटली बस खोल ही पाया था।

जीवन समर्पित कर

मालिक को अपना कर

स्मृत अहसानों ने

छोटा सा उलहना दे पाया था।

ज्वार की वह बासी रोटी

गिजगिजी बहुत मोटी

महुओं सहित इस अनोखे भोजन को

कर ही न पाया था।

मालिक ने पुकारा...…

Continue

Added by Dr T R Sukul on November 23, 2015 at 10:30pm — 4 Comments

एक घूंट फिर सही।

117

वही !

एक घूंट फिर सही।

निराशा  के गहरे आघातों से,…

Continue

Added by Dr T R Sukul on October 29, 2015 at 10:03pm — No Comments

काल!

99

कल, ए काल!

मैं, तेरे साथ ही आया था।

वादा भी था, साथ साथ चलने का , चलते रहने का।

आज,

तू मुझसे कितना आगे निकल गया.....!

नहीं नहीं... .. मैं रह गया हॅूं तुझसे बहुत पीछे.... ..!

इसलिये कि,

मैंने रुक कर, देखना चाहा इस प्रकृति के प्रवाह को,

पल पल बदलते रंगों के निखार को,

उलझती सुलझती वहुव्यापी चाह को।

तू... चलता रहा, चलता रहा कछुए की तरह,,,

और मैं ने अपनाया खरगोश की राह को।

एक बार नहीं , कई बार हुई हैं ये…

Continue

Added by Dr T R Sukul on October 10, 2015 at 3:45pm — 2 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122**भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आइन्सान को इन्सान बनाने के लिए आ।१।*धरती पे…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
5 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
9 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
13 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
18 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
18 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
19 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service