For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बासन्ती  गन्ध
-----------
सोचा था,
उस पार ,
शान्त निर्विघ्न क्षणों में,
पहुंच,
तुम्हारी मधुरस्मृति को सतत करूंगा।।


अलसाये ललचाये मन की तृप्ति हेतु,
नवकल्पित स्वरूप में,
खुद को व्यथित करूंगा।।


पर हाय! निठुर इस विपुल पवन के
तीक्ष्ण शूल,
ले आये,
 बासन्ती  गन्धयुक्त मधु झरित फूल।।


रह गया भ्रमित इस पार,
प्रिये!
उस पार.…
तुम्हारी याद रही.…
अब बतलाओ ,
मैं,
मधुर तुम्हारे संस्पर्श को...
किन यत्नों से प्राप्त करूंगा??
---
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 707

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr T R Sukul on February 16, 2016 at 11:35am

प्रशंसा के लिए अपार धन्यवाद , आदरणीय सतविंदर जी।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 11, 2016 at 11:42pm
बहुत सुंदर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई आदरणीय सर जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 11, 2016 at 11:25pm

मेरे कहे का अनुमोदन करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय टी आर शुक्ल जी. 

सादर

Comment by Dr T R Sukul on February 11, 2016 at 11:14pm

आदरणीया राहिलाजी ! रचना को पसंद करने और प्रशंसा करने के लिए कोटिशः धन्यवाद। सादर.

Comment by Rahila on February 11, 2016 at 11:07am
आदरणीय शुक्ल सर जी! आपकी कविता पहली बार पढ़ी और आपको बधाई देने से। खुद को रोक ना सकी । इतने सुन्दर भाव लिये है रचना कि सीधे दिल में उतरती चली गई । बहुत बधाई आपको।सादर नमन ।
Comment by Dr T R Sukul on February 10, 2016 at 4:12pm

आदरणीय महोदय सौरभ पाण्डेयजी ! कविता पर आपकी स्नेहमयी दृष्टि ने सचमुच बासन्ती वयारि की मोहक सुगंध भर दी है। विनम्र आभार।
आपके द्वारा दिया गया संकेत शतप्रतिशत सत्य है , वह "बासन्ती " गन्ध ही होना चाहिए , टंकण की त्रुटि सुधारने का प्रयत्न करता हूँ। इसी प्रकार कृपा दृष्टि अपेक्षित है। ससम्मान।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 10, 2016 at 6:22am
अंतर्लय से अनुप्राणित इस कविता से निस्सृत मनस-द्वंद्व पाठक की संवेदनशीलता से तारतम्यता बैठा पाने सक्षम है.
हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ, आदरणीय टी आर शुक्ल जी.


एक विन्दु पर आपसे स्पष्ट होना चाह रहा था. बसंती पवन की गंध तो बासंती होगी न ?
सादर
Comment by Dr T R Sukul on February 7, 2016 at 11:29am

आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी ! रचना की अंतरंगता अनुभव करते हुए अपने मनोभावों को प्रकट करने के लिए कोटिशः धन्यवाद। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2016 at 11:57pm

आदरणीय टी आर शुक्ल जी इस गहन भावों से दिल में उतरती इस शानदार प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई। 

Comment by Dr T R Sukul on February 6, 2016 at 10:00pm

आदरणीय महोदय सुशील सरना जी! रचना की मार्मिकता परखने और उसे मान देने के लिए बहुत आभार।    

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service