For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘गंगा‘, ‘यमुना‘ के तीर पर बैठे,

गंगा‘, ‘यमुना‘ के तीर पर बैठे,
टूटती जुड़ती लहरों के व्यतिकरण में,
तुझे देखा है कई लोगों ने।

और मैं ने, ‘बेबस‘ और ‘धसान‘ में गोता लगाते
बार बार इस पार से उस पार जाते, आते, हृदयंगम किया है।

जबकि अन्यों को तू गिरिराज की
तमपूर्ण खोहों में छिपा मिला।

मेरे निताॅंत एकान्तिक क्षणों में क्या
तू मेरे चारों ओर प्रभामंडल की तरह नहीं छाया रहा?

आज तुझे उनमें भी लयबद्ध पाया
जिन्हें लोग कहते हैं कुत्सित , घ्रणित और अस्पृश्य ।

तेरी विराटता और सूक्ष्मता का
ऐंसा आश्चर्यजनक मिश्रण
कर रहा है बार बार भ्रमित, तथाकथित
विद्वज्जनों को।

फिर भी वे, शान से....
बिना चकित हुए, तेरी माया पर
दिये जा रहे हैं लगातार..... व्याख्यान.....
ढकेल रहे हैं इस जगत को,
सत्य से पृथक,
मिथ्यात्व में।
28 जून 1986
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 571

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr T R Sukul on October 5, 2015 at 10:25am

बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपालनारायण श्रीवास्तवजी, यथार्थता की परख करने के लिए। वास्तव में , उसे मन की व्यापकता के सहारे अनुभव किये जाने का अभ्यास करना पड़ता है न कि व्याख्यानों के सहारे। कविता को  अनुमोदन करने के लिए एक  वार पुनः धन्यवाद।   

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 5, 2015 at 8:55am

आदरणीय आपने कई जगह  उसका  आभास -साक्षात्कार किया और सुन्दर शब्दों में ढाला .

Comment by Dr T R Sukul on October 3, 2015 at 10:26pm

बहुत धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पांडेजी  , कविता को पसन्द करते हुए  सार्थक टीप देने के लिये। 

Comment by Dr T R Sukul on October 3, 2015 at 10:24pm

बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारीजी , कविता के मर्म पर सार्थक टीप देने के लिये।
वास्तव में विद्वज्जन उसकी सर्वव्यापकता पर खूब व्याख्यान देते पाये जाते हैं परन्तु उसे कुछ स्थानों और आकारों में बाँध कर उस अनिर्वचनीय को सीमित कर के स्वयं भी भ्रमित होते हैं और अन्यों को भी भ्रमित करते हैं।

Comment by pratibha pande on October 3, 2015 at 6:27pm

बहुत गहन विचारों को लिए सार्थक प्रस्तुति हैआपको ह्रदय से बधाई आदरणीय Dr T.R.Sukul ji  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 3, 2015 at 5:13pm

आज तुझे उनमें भी लयबद्ध पाया
जिन्हें लोग कहते हैं कुत्सित , घ्रणित और अस्पृश्य ।

उसकी यही तो विराटता है की आज तक उसमे कोई वर्गीकरण जैसी दुर्भावना ने जन्म नहीं लिया उसकी यही विशेषता तो विद्व्द्जनो को उसकी गरिमा में लम्बे  चौड़े व्याख्यान देने को बाध्य करती हैं 

बहुत गहन अनुभव का एहसास कराती प्रस्तुति आ०  Dr T R Sukul जी बहुत बहुत बधाई आपको |

Comment by Dr T R Sukul on October 3, 2015 at 3:50pm

आभार एवं वहुत धन्यवाद महोदय , कविता की गंभीरता अनुभव करने के लिए। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 3, 2015 at 1:25pm

बहुत सही कहा आदरणीय ! सार्थक रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
7 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service