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होली मनाना आपका.....ग़ज़ल // डॉ. प्राची

है अदा या फिर सितम होली मनाना आपका।
रात के बारह बजे जी भर सताना आपका।

रंग ले आना छिपाकर नित नई तरकीब से
हाय! चालों में उलझ हल्ला मचाना आपका।

टैग तय कर टोलियों में, बालटी के ड्रम लिए
क्या गज़ब अंदाज़ है, टोली में जाना आपका।

जीन्स टी-शर्टों की कतरन काट करना चीथड़े
बन लफंडर साथ फिर ऊधम मचाना आपका।

हम भला कोरे रहें ये आपको मंज़ूर कब
पर कहो अच्छा है क्या हमको भिगाना आपका?

बन के बन्दर लौटकर दर्पण में खुद को देखकर
साल के बस एक दिन उबटन लगाना आपका।

आप ही से है जँवा होली की ये महफ़िल हुज़ूर
हाय! कैसे हम सँभालें भाव खाना आपका।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 28, 2016 at 1:13pm
आ प्राची दीदी कमाल का भाव संकलन और गजल बिधा में पिरोने से और भी रंगीन हो गए सादर बधाई नमन

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2016 at 1:01pm

:-)))

बढ़िया होली हुई आदरणीया .. 

वाह बधाई हो..

कायदा है या सितम होली मनाना आपका .. 

Comment by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 1:25pm
वाह वाह आदरेया बहुत ही उम्दा ग़ज़ल
Comment by Shyam Narain Verma on March 25, 2016 at 4:21pm
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 24, 2016 at 7:36pm
वाह आदरणीया डॉ प्राची जी अच्छी ग़ज़ल हुई है सादर बधाई आपको
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 24, 2016 at 9:45am
होली के इस रंग को हम भी समझ पाए सही
क्या ख़ूब रहा आज ये हाल सुनाना आपका।

बहुत सुंदर चित्रण ।सादर नमन
Comment by Manan Kumar singh on March 24, 2016 at 8:08am
क्या खूब यह होली का है हाल सुनाना आपका! बधाई!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2016 at 4:37pm

आ० प्राची जी , आपकी गंभीर रचनाएँ ही अब तक पढी थी . इस गजल में आपके व्यक्तित्व का एक और ही स्वरूप प्रत्यक्ष  हुआ है . यह रूप  अधिक सहज और स्वाभाविक है . इस रचना की लिए साधुवाद . एक पंक्ति संभवतः इस प्रकार होनी चाहिये  थी -' पर कहो अच्छा है क्या हमको भिगाना आपका? सादर .

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