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कहर (लघुकथा) राहिला

पकी फसल पर असमय बरसात और ओलों के कहर ने किसानों के पेट और कमर पर जो लात मारी थी। उसी का सर्वे चल रहा था। कौन किस हद तक घायल है उसी हिसाब से मुआवजा मिलना था। सो,दो सरकारी मुलाजिम एक पुरवा से दूसरे पुरवा जा जाकर कागज़ रंग रहे थे।
"भाग यहाँ से साsssले, यहाँ आया तो तेरी खैर नहीं। हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की? तेरा मन नहीं भरा मेरे बाल बच्चे खा कर? और कितनों को खायेगा?आ..ले,खाले...सब को खाजा..आजा,आ के दिखा तुझे अभी मजा चखाता हूं"कह कर वो अंधाधुंध पत्थर मारने लगा। उसकी विक्षिप्त सी हालत देख दोनों सर्वेकर्ता दहशत में आ गये,उसमें से एक ने साथ खड़े ग्रामीण से पूछा-
"अरे भैया! इसे क्या हुआ? पागल है क्या? "
"अरे अब क्या बतायें हजूर! अच्छा खासा मेहनती किसान था।पिछले साल इन्हीं दिनों ओलों ने इसका सब कुछ बरबाद कर दिया।लागत भी नहीं निकाल पाया बेचारा!, ऊपर से साहूकार के तकाज़े। सो खा लिया परिवार सहित जहर, कोई नहीं बचा! बस इसी की नहीं आई थी..सो बच गया, लेकिन बच्चों की लाशें देखकर दिमाग ठिकाने नहीं रहा।"
"ओहो. .बहुत बुरा हुआ, लेकिन ये पत्थर किसे मार रहा है? "
"उन्हें" असमय घिर रहे काले बादलों की ओर इशारा करते हुये वो ग्रामीण बोला।"

.

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 17, 2016 at 4:50pm

क्या बात है, बहुत ही अच्छी लघुकथा कही है आदरणीया राहिला जी, विक्षिप्त की मानसिकता का चित्रण और उस पर गजब की पंचलाइन| सादर बधाई स्वीकार करें|

Comment by Rahila on March 17, 2016 at 11:20am
आदरणीया राजेश कुमारी जी! आपने रचना का मर्म समझा इसके लिये बहुत आभार । बहुत निकट से किसानों की तकलीफ से रूबरू हो रही हूं।शायद इस लिये रचना मार्मिक बन पड़ी ।बहुत शुक्रिया रचना को अपना अमूल्य समय देने के लिये ।सादर नमन
Comment by Rahila on March 17, 2016 at 11:16am
आद.तेजवीर सर जी!,आद.चौहान सर जी!, आद. समर कबीर साहब!आप सब की टिप्पणियां सदैव हौसला बढ़ती है और बेहतर लेखन की ओर प्रेरित करती है । आप सब के तहे दिल से शुक्रिया।आप सब का सदैव यूं ही साथ बना रहे ।सादर नमन ।
Comment by Rahila on March 17, 2016 at 11:11am
बहुत-बहुत शुक्रिया आद.उस्मानी जी,आद.धामी सर जी, आद. पवन सर जी आप सब ने रचना को पसंद किया मेरा लेखन सार्थक हुआ। सादर नमन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 16, 2016 at 9:50pm

प्रकृति पर निर्भर रहने वाले किसान को प्रकृति ही मरने को मजबूर कर देती है किसानों के हालात पर बहुत अच्छी लघु कथा लिखी राहिला जी हार्दिक बधाई 

Comment by Samar kabeer on March 16, 2016 at 6:19pm
मोहतरमा राहिला जी आदाब,इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by narendrasinh chauhan on March 16, 2016 at 2:05pm

सुन्दर प्रस्तुति

Comment by TEJ VEER SINGH on March 16, 2016 at 12:16pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

Comment by Pawan Jain on March 16, 2016 at 11:07am

बढ़िया ,राहिला जी । प्रकृतिक मार से सभी पगलाए है , प्रतीक के माध्यम से अच्छी प्रस्तुति ,बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2016 at 11:03am

समाया दर्द किस किस का

बयां  में   आपके  बोलो .................हार्दिक बधाई

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