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खूब हुई है यार मुनादी-ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

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सुख  की  बात  यही  है  केवल  म्यानों  में  तलवारें हैं
बरना  घर  के  ओने  कोने  दिखती   बस  तकरारें  हैं /1

खुद ही जानो खुद ही समझो उस तट क्या है हाल सनम
इस  तट   आँखों   देखी   इतनी   बस  टूटी  पतवारें  हैं /2

रोज वमन  विष का  होता  है  नफरत का दरिया बहता
यार अम्न को  लेकिन  बिछती  हर  सरहद  पर तारें हैं /3

रोज  निर्भया  हो  जाती  है रेपिष्टों  का  यार  शिकार
गाँव  नगर  रजधानी  तक  यूँ  कहने  को  सरकारें  हैं /4

खूब  हुई  है यार  मुनादी अच्छे  दिन  बाँटेंगे  खुशियाँ
अपने  हिस्से   में   तो  अब  भी  रोती   हुई  उधारें हैं /5

सारे  भाई  मिलकर  पहले  जिस  आँगन  में  रहते थे
देख  रहा  हूँ  आज  ‘मुसाफिर’  उस  आँगन  दीवारें  हैं /6

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

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Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 26, 2016 at 9:46am
आदरणीय नि:सदेह गजल अच्छी है परन्तु शेर ५ बहर से खारिज है खुशियाँ के स्थान पर खुशी हो जाये तो मेरे विचार से ठीक रहेगा सुन्दर गजल के लिये बधाई
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 22, 2016 at 7:56pm
बहुत ख़ूब आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
Comment by SALIM RAZA REWA on January 22, 2016 at 7:51pm
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2016 at 7:52pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , आपको दिल से बधाइयाँ गज़ल के लिये ।
बस - पाँचवे शेर मे प्रयुक्त -- उधारें काफिया से सहमत नही हो पा रहा हूँ ,  उधारी का बहुवचन उधारियाँ  सही है , अगर शेर इसी अर्थ मे है तो ? सोच लीजियेगा ।

Comment by Shyam Narain Verma on January 21, 2016 at 10:50am
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2016 at 6:43am

आ० भाई मिथिलेश जी , आपकी प्रतिक्रिया पा मन आस्वस्थ हुआ . कमियों से अवगत करते रहिये . उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2016 at 6:40am

आ० भाई समर कबीर जी , आप जैसे विद्वजनो से सराहना पा ग़ज़ल का मान बढ़ा है हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2016 at 6:38am

आ० भाई तेजवीर जी , आपका स्नेह पाकर धन्य हुआ . हार्दिक आभार l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2016 at 11:54pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. 

Comment by Samar kabeer on January 19, 2016 at 9:07pm
जनाब लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'जी आदाब,मुबारकबाद पेश करता हूँ आपको इस शानदार और जानदार ग़ज़ल के लिये,वाह बहुत ख़ूब मज़ा आगया |

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