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तू जीता है,मगर ज़िंदा नहीं है (ग़ज़ल)

1222 1222 122

अगर दिल में तेरे करूणा नहीं है
तू जीता है, मगर ज़िंदा नहीं है

वो क्या समझे किसी की अहमियत को
कि जिसने कुछ,कभी खोया नहीं है

तेरी आँखों के मयखाने में बैठा
कहे ये दिल,कोई तुझ सा नहीं है

उगाते हैं जो दाना,उनके घर में
कभी चावल,कभी आटा नहीं है

मिलेगा फल यहीं कर्मों का तेरे
अलग कोई,कहीं दुनिया नहीं है

मेरी मंज़िल खड़ी है जिस जगह पर
वहां तक रास्ता जाता नहीं है
========================
(मौलिक व अप्रकाशित)

जयनित कुमार मेहता

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Comment

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Comment by जयनित कुमार मेहता on January 14, 2016 at 8:31pm
ग़ज़ल आपको अच्छी लगी, ये मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 13, 2016 at 11:20am

उगाते हैं जो दाना,उनके घर में
कभी चावल,कभी आटा नहीं है | -- बहुत  खूब 

मिलेगा फल यहीं कर्मों का तेरे
अलग कोई,कहीं दुनिया नहीं है | -- लाजवाब कहन | उम्दा  गजल  के लिए बहुत बुहत बधाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 13, 2016 at 9:00am

अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई ..

Comment by ajay sharma on January 12, 2016 at 10:11pm

मिलेगा फल यहीं कर्मों का तेरे
अलग कोई,कहीं दुनिया नहीं है.........wah wah wah 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 4:17pm

आदरनीय जयनित भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , सभी अशआर अच्छे लगे , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on January 11, 2016 at 6:15pm
आदरणीय समर कबीर जी, आपकी प्रतिक्रिया काफी उत्साहवर्धक और आश्वस्तकारी होती है.. हार्दिक धन्यवाद आपको।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on January 11, 2016 at 6:14pm
ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ, आ. राम जी।
Comment by जयनित कुमार मेहता on January 11, 2016 at 6:13pm
बहुत-बहुत धन्यवाद आपको, आ. श्याम नारायण वर्मा जी।
Comment by Samar kabeer on January 11, 2016 at 5:50pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल से नवाज़ा आपने मंच को,बधाई स्वीकार करें |
Comment by Ram Ashery on January 11, 2016 at 4:44pm

अति सुंदर रचना अंतर मन की गहराई से आपको बहुत बहुत बधाई स्व्वेकर हो  

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