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मायरा ( लघु कथा ) जानकी बिष्ठ वाही

मानों कयामत बरपा हो गई। पूरा शहर लबालब भरा है।चारों ओर त्राही-त्राही मची हुई है। शिवानी प्रसव वेदना से तड़प रही है। शरद पैदल ही उसे अस्पताल ले जा रहा है
"अब बचना मुश्किल है।"कराहते हुए शिवानी बोली।
पानी गले-गले तक पहुँच गया।जीवन की आशा क्षीण हो चली है। एक अज़नबी तैरता हुआ करीब आया।
"मैं आप लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाने आया हूँ।"
उसकी मदद से शरद समय पर शिवानी को अस्पताल पहुंचाने में सफ़ल हो गया।
"शुक्रिया ! आज़ तुम न होते तो जाने क्या होता? "शरद ने कहा।
"ये तो मेरा फ़र्ज़ था।अब चलूँगा।"
" क्या मैं हमें बचाने वाले फ़रिश्ते का नाम जान सकता हूँ।"
"मीर अनवर , एम.बी.ए. कर रहा हूँ।"
"बधाई ! बिटिया हुई है।"नर्स आकर बोली।
भाग कर शरद ,शिवानी के पास पहुंचा और चाँद के टुकड़े को गले लगाकर बोला -
"शिवानी हम इसका नाम मायरा रखेंगें ।"
"मायरा ? ये तो मुस्लिम नाम है।आप लोग तो हिन्दू हो ना ?" नर्स बोली।
"ये हमारा इंसानियत को शुक्रिया कहने का तरीका है। अगर आज़ मीर अनवर न होता तो मायरा मेरी गोद में न होती।उसने हमें बचाते समय ये कहाँ सोचा कि वह मुसलमान को बचा रहा है या हिंदू को।"कह शरद ने प्यार से बिटिया को निहारा।

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2016 at 10:51am

KOTI-KOTI NAMAN .

Comment by Rita Gupta on January 30, 2016 at 1:48am

बहुत  ही अच्छी संवेदनशील प्रस्तुति .


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Comment by rajesh kumari on January 7, 2016 at 7:14pm

बहुत शानदार लघु कथा देर से आने का खेद है ...दिल से बधाई लीजिये जानकी जी .

Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 2:18pm

इस अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया जानकी जी।

Comment by Janki wahie on December 12, 2015 at 9:39pm
आ.नीता कसार जू हार्दिक अभिनन्दन अति सुंदर सार्थक टिप्पणी द्वारा मनोबल बढ़ाने के लिए।नमन।
Comment by Janki wahie on December 12, 2015 at 9:37pm
तहेदिल से शुक्रिया प्रिय राहिला। कितना सुंदर लिखती हो आप सरस,सुंदर , प्रवाह्युक्त । मन मोह लेती है आपकी लेखनी।
Comment by Nita Kasar on December 12, 2015 at 8:54pm
इंसानियत से बडा कोई धर्म नही होता जब कई मददगार बन कर आये तो वह देवतुल्य हो जाता है धर्म के रूप तो हमने ही बनाये है बहुत ही सराहनीय कथा के लिये हार्दिक बधाई आद०जानकी वाही जी ।
Comment by Janki wahie on December 11, 2015 at 2:31pm
सादर आभार शहज़ाद जी आपकी सार्थक टिप्पणी ने कथा में ज़ान डाल दी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 11, 2015 at 12:45pm
वक़्त की माँग के अनुरूप सार्थक प्रेरक रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया जानकी वाही जी।
Comment by Rahila on December 11, 2015 at 11:30am
अरे वाह.. .प्रिय जानकी दी!यूं तो सोचा ही नहीं मायरा का अर्थ । आपने तो नाम के अर्थ से पूरी रचना में ही जान डाल दी । अदभुत । बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिये, बहुत बढ़िया विषय और उससे कही ज्यादा अच्छी प्रस्तुति । बहुत बधाई आपको । सादर नमन ।

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