For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : मैं पागल था मगर इतना नहीं था

बह्र : १२२२ १२२२ १२२

 

सनम जब तक तुम्हें देखा नहीं था

मैं पागल था मगर इतना नहीं था

 

बियर, रम, वोदका, व्हिस्की थे कड़वे

तुम्हारे हुस्न का सोडा नहीं था

 

हुआ दिल यूँ तुम्हारा क्या बताऊँ

मुआँ जैसे कभी मेरा नहीं था

 

यकीनन तुम हो मंजिल जिंदगी की

ये दिल यूँ आज तक दौड़ा नहीं था

 

तुम्हारे हुस्न की जादूगरी थी

कोई मीलों तलक बूढ़ा नहीं था

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 778

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 28, 2015 at 11:24am

शुक्रिया आदरणीय श्याम नारायण जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 28, 2015 at 11:24am

शुक्रिया आदरणीय मनोज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 11:02am

हुआ दिल यूँ तुम्हारा क्या बताऊँ

मुआँ जैसे कभी मेरा नहीं था   -- क्या बात है !! आदरणीय बेहतरीन गज़ल कही है , इस शे र के लिये और गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 28, 2015 at 10:48am

अंदाजे बयां  का कमाल है , बढ़िया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 27, 2015 at 10:26pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, शानदार ग़ज़ल हुई है, जमीन पुरानी है लेकिन कहन का अंदाज़ बिलकुल नया और ताजगी भरा है. बहुत बधाई 

ये दो अशआर तो कमाल है इन पर दिल से दाद और दुआएं 

हुआ दिल यूँ तुम्हारा क्या बताऊँ

मुआँ जैसे कभी मेरा नहीं था................. मुआँ ने अपना कमाल दिखाया है.

तुम्हारे हुस्न की जादूगरी थी

कोई मीलों तलक बूढ़ा नहीं था.......... रिवायती शेर मगर प्रतीक और कहन का अंदाज बिलकुल नया और निराला

पुनः बधाई  

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 27, 2015 at 2:01pm
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है..बधाई स्वीकारें!!
Comment by ajay sharma on September 26, 2015 at 11:51pm

khoob kaha hai 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 26, 2015 at 8:03pm
तुम्हारे हुस्न की जादूगरी थी
कोई मीलों तलक बूढ़ा नहीं था
-------------


सारे शेर बढ़िया हैं;एक ताज़ा ग़ज़ल: बधाइयाँ
Comment by Shyam Narain Verma on September 26, 2015 at 4:54pm
"क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को "
Comment by मनोज अहसास on September 26, 2015 at 4:26pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय धर्मेन्द्र जी
वाहवाह
इस ग़ज़ल से एक पुरानी ग़ज़ल की याद आती है जिसे जगजीत सिंह ने गाया है

तेरे बारें में जब सोचा नहीं था
मैं तनहा था मगर इतना नहीं था


बहुत बहुत आभार
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
20 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
19 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service