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इतनी सारी रोटियाँ (लघुकथा ) कान्ता राॅय

"कितने बडे परिवार में व्याह दिया तुमने माँ , एक बार भी नहीं सोचा कि कैसे निभाऊँगी मै ? "

"नहीं बिट्टो ऐसा नहीं कहते ,भरा - पूरा घर है तुम्हारा । ऐसे परिवार क़िस्मत- वालियों को मिलते है । "

"खाक क़िस्मत -वालियाँ , तुम नहीं जानती कि मुझे , इतनीss सारी रोटियां अकेले सेंकनी पडती है ।"

"घर के लोगों की रोटियां नहीं गिनते बिट्टो , नजर लग जाती है ।" माँ हल्की चपत लगाते हुए कह उठी थी उस दिन ।

माँ का लाड़ से मुस्कुरा कर रह जाना, आज उसे बहुत याद आ रहा था ।

पति की अचानक हुए रोड एक्सीडेंट में उनका मरणासन्न अवस्था और  बडे़ परिवार का एकजुटता से बच्चे समेत उसको भी संभालना , आज रसोई पकाते हुए रोटियां गिनती में बहुत कम  नजर आ  रही थी ।

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 18, 2015 at 12:00am

जागरुक करती हुई तथा सशक्त भावदशा को अभिव्यक्त करती लघुकथा केलिए हार्दिक बधाइयाँ.

भाषा के अनुसार अवस्था शब्द स्त्रीलिंग है.  

व्याह वस्तुतः ब्याह शब्द है. 

है और हैं के प्रति सचेत रहना आवश्यक है. 

शुभ-शुभ

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 17, 2015 at 11:00pm

बहुत ही  बढ़िया लघुकथा  है आ०  कांता जी, संयुक्त परिवार दुःख कैसे  बाँट लेता है, कई बार पता भी नहीं चलता|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 17, 2015 at 8:47pm
आदरणीया कांताजी मौजूदा दौर में ऐसी कथायें प्रेरक होती है। आपको इस सार्थक कथा के लिये हार्दिक बधाई
Comment by मनोज अहसास on September 17, 2015 at 8:31pm
बहुत खूबसूरत आदरणीया कान्ता राय जी
सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 17, 2015 at 8:00pm

अ० कांता जी अपनी अच्छे विषय को उत्तम बनाया कुछ और शिल्प में समय  देती तो उत्कृष्ट बन जाती , फिर भी मेरी और से  बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 17, 2015 at 5:11pm

आदरणीया कांता जी, यथार्थ की ऐसी मार्मिक प्रस्तुति. बहुत शानदार लघुकथा हुई है. पंच लाइन अपना प्रभाव गहरे तक छोडती है- // आज रसोई पकाते हुए रोटियां गिनती में बहुत कम  नजर आ  रही थी ।//

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by pratibha pande on September 17, 2015 at 12:32pm

अपनों की पहचान मुसीबत में ही होती है ,और अगर उस समय अपने सच में अपनों की तरह खड़े हो जाएँ तो उनके लिए उठाये गए सारे कष्ट सार्थक लगते हैं , अंत बहुत  ही गूढ़ भाव लिए है 'रोटियां गिनती में कम नज़र आ रही थीं 'यथार्थ से जुडी इस रचना  के लिए आपको ढेरों बधाई आदरणीया कांता जी  

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