For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग्रीटिंग कार्ड (लघु कथा)......

 ग्रीटिंग कार्ड (लघु कथा).......

आज सुशील अपने बेटे के बर्थडे पर बहुत खुश था। कवि होने के नाते उसने अपने पितृभाव को तो कागज़ पर उतार दिया था लेकिन फिर भी सोचा कि इसके साथ अगर एक ग्रीटिंग कार्ड भी दे दिया जाए तो बेटा खुश हो जाएगा। ग्रीटिंग कार्ड की बड़ी सी शॉप में जाकर वो कार्ड देखने लगा। कुछ देर के बाद दुकानदार ने पास आकर कहा '' सर, क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ। '' सुशील ने युवा जोड़ों की भीड़ में सकपकाते हुए कहा '' अरे हाँ , देखिये दरअसल मुझे बाप द्वारा बेटे को बर्थडे पर दिए जाने वाले कार्ड की जरूरत है लेकिन यहां तो लगता है शायद सिर्फ युवाओं के प्रेम प्रदर्शन से सम्बंधित ही कार्ड हैं , रिश्तों के कार्ड नहीं। '' दुकानदार कुछ हैरत भरी नज़र से हमें ताकने लगा फिर बोला '' आपने ठीक कहा है सर। आजकल रिश्ते हैं कहाँ और जो थोड़े बहुत बचे हैं वो आधुनिकता की चकाचौंध में अंतिम सांसें ले रहे हैं। ठहरिये , मैं आपके लिए कहीं से कार्ड ढूंढ कर लाता हूँ। '' कुछ देर में दुकानदार एक पुराना सा छोटा कार्ड सुशील के हाथ में देकर कहने लगा '' लीजिये सर , ये कार्ड मिल गया। पुराना है लेकिन इसमें रिश्तों की गंध वही है। '' ''ये तो बहुत छोटा है कोई बड़ा कार्ड नहीं है क्या ?'' सुशील ने कार्ड लेते हुए कहा। दुकानदार हँसते हुए बोला '' सर जैसे जैसे रिश्ते सिकुड़ते जा रहे हैं , कार्ड भी सिकुड़ते जा रहे हैं .... वो वक्त दूर नहीं कब रिश्तों की मिठास की तरह कार्ड भी खो जाएंगे । ''
''तुम ठीक कह रहे हो भाई। सुशील ने कार्ड हाथ में कसकर पकड़ते हुए कहा।'' फिर हाथ के लिफ़ाफ़े में कैद रिश्ते को ले कर घर की तरफ चल पड़ा ।

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 838

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 9:39pm

आदरणीय  VIRENDER VEER MEHTA  जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 9:38pm

आदरणीय  rajesh kumari  जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 9:38pm

आदरणीय  TEJ VEER SINGH   जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 9:37pm

आदरणीय Omprakash Kshatriya  जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 9:37pm

आदरणीय Sulabh Agnihotri  जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 12, 2015 at 9:37pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर  जी आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on August 12, 2015 at 9:18pm
आदः सुशील सरना जी बहुत सुन्दर भावनाओ भरी रचना। सादर बधाई स्वीकार करे।
ये सच ही है कि आधुनिकता और समय की रफ्तार ने रिश्तो को सीमित कर दिया है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 12, 2015 at 7:59pm

सच में रिश्ते सिकुड़ते ही जा रहे हैं भावनाएं ही दम तोड़ रही हैं ..बहुत गंभीर रचना हुई दिल से बधाई आपको आ० सुशील सरना जी |

Comment by TEJ VEER SINGH on August 12, 2015 at 7:54pm

आदरणीय सुशील जी,हार्दिक बधाई, बहुत मर्म स्पर्शी लघुकथा बनी है!

Comment by Omprakash Kshatriya on August 12, 2015 at 6:35pm
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service