For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देखते ही देखते देखो समां क्या हो गया
आज अपना आप ही खुद से पराया हो गया

देखकर बदहाली उसकी उठता नहीं अब दिल में दर्द
वो मेरी दुनिया का मालिक था जो दुनिया हो गया

मैंने उसके हिस्से की तन्हाइयां जब मांग ली
वो मेरी उम्मीद से भी ज्यादा तनहा हो गया

भूलने की कोशिशों में याद रखने की तलब
दो उलट लहरो में फंसकर पाट गहरा हो गया

उसके हाथो की लकीरो में न मेरा नाम था
और जो कुछ भी लिखा था वो भी धुंधला हो गया

रह गयी है पास मेरे दर्द की परछाईया
उसको खोकर जिसको पाया वो उसी का हो गया

मैंने उसकी बेबसी से अपने मिसरे रंग लिए
बस इतनी हिम्मत से मैं भी इश्क़ वाला हो गया

अहसास ये आँखे तो बस देखती ही रह गयी
ज़ीस्त का हर एक मंज़र बद से बदतर हो गया




मौलिक और अप्रकाशित

Views: 522

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on May 8, 2015 at 2:33pm

बहुत मेहरबानी सर
आदरणीय सौरभ पांडेय जी
आपने मुझे एक और राह दिखाई है ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 7, 2015 at 11:36pm

इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाइयाँ मनोज भाई..  विश्वास है, आपको भान हो चुका होगा कौन-कौन से मिसरे बहके हैं. आप अपनी गज़लों के मिसरों का वज़न दे दिया करें. इससे आप ही को लाभ होगा. आपकी इस गज़ल का वज़न २१२२ २१२२ २१२२ २१२ है.

शुभेच्छाएँ

Comment by मनोज अहसास on May 7, 2015 at 4:51pm
शुक्रिया डॉ साहब
सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 7, 2015 at 4:47pm

मनोज जी इस सुंदर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई ..बिद्वत जन सुझाव दे ही चुके हैं  सादर 

Comment by मनोज अहसास on May 6, 2015 at 9:15pm
आप सभी ने साथ दिया
बहुत मेहरबानी
मै कोशिश करूगा कि कुछ सुधार हो जाए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 6, 2015 at 8:38pm

आदरणीय , गज़ल अच्छी हुई है , आपको हार्दिक बधाई । 

एक दो मिसरे बे बहर  लग रहे हैं , 

देखकर बदहाली उसकी उठता नहीं अब दिल में दर्द 

अहसास ये आँखे तो बस देखती ही रह गयी       -- दोनो की तक्तीअ कर के देख लीजियेगा ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 6, 2015 at 7:46pm
बहुत खूब, प्रसंशनीय , बधाई, आदरणीय मनोज कुमार एहसास जी , सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 5:53pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है 
देखते देखते के बाद फिर देखो थोडा अटपटा लग रहा है 
देखकर बदहाली उसकी उठता नहीं अब दिल में दर्द..  में बहर टूट गयी है 
कुल मिलकर बहुत अच्छा प्रयास है .
बधाई आपको 

Comment by jyotsna Kapil on May 6, 2015 at 5:52pm
वाह.....लाजवाब पंक्तियाँ।एक-2 शब्द दिल को छूता चला गया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 6, 2015 at 5:47pm

वाह वाह मनोज जी बहुत खूब .... बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए 

इस शेर पर दिल से दाद हाज़िर है -

मैंने उसके हिस्से की तन्हाइयां जब मांग ली
वो मेरी उम्मीद से भी ज्यादा तनहा हो गया

आखिरी शेर में मिसरा-ए-उला पर एक बार और गौर कीजियेगा. 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service