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वो तेरे इश्क़ में दरिया होना
सिमटकर आज ज़रा सा होना

होश में आके हमने जाना है
कितना मुश्किल था तमाशा होना

तुमको देखा वो सब याद आया
क्या न हो पाना और क्या होना

गलतियां तुममे ढूंढ़ ली मालिक
हमसे हो पाया ना इन्सां होना

गुनाह इस ग़ज़ल का उतरना है
या फिर इसमें ना तेरा होना

तहज़ीब हमसे कोई निभ न सकी
ज़िन्दगी या के काफ़िया होना

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 14, 2015 at 10:41pm

होश में आके हमने जाना है
कितना मुश्किल था तमाशा होना...  बहुत उम्दा कहन ..

लेकिन आपको अपने कहे को ग़ज़ल बताने के लिए मेहनत करनी होगी. 

शुभेच्छाएँ

Comment by मनोज अहसास on May 10, 2015 at 9:32am
नमस्कार सर
आदरणीय वीनस जी
बहुत इंतज़ार किया मैंने आपका
आपको शायद याद होगा इस मंच तक आप ही मुझे लाये है
और आपने ग़ज़ल के बारे में बहुत सारी बातें मुझे फ़ोन पर बताई भी थी
पर बिजी होने की वजह से मै उन पर ध्यान नहीं दे पाया और एक बात ये कि अब पुराणी आदत कैसे सुधरेगी ये भी सोचने का विषय है
फिर भी मेरी तरफ निगाह रखिये इनायत होगी
सादर
Comment by वीनस केसरी on May 10, 2015 at 12:28am

जहाँ रचना की उन्नत भाव दशा प्रेरित करती है .. वहीं शिल्प के प्रति आग्रही होना पड़ेगा
सादर

Comment by मनोज अहसास on May 8, 2015 at 8:30pm
बहुत आभार सर
मेरी ओर आपकी निगाह है बहुत आभार सर
Dr.Vijai shanker जी
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 8, 2015 at 6:20pm
बहुत सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति, बधाई, आदरणीय मनोज कुमार जी , सादर।

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