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ग़ज़ल -- कोलाहल थोड़ा सा कोई लाया क्या ? ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  2   

दरवाज़े पर देखो कोई आया  क्या ?

अपने हिस्से का कोलाहल लाया क्या ?

ख़ँडहर जैसा दिल मेरा वीराना, भी

खनक रही इन आवाज़ों को भाया क्या ?

कुतिया दूध पिलाती है, बंदरिया को

इंसाँ मारे इंसाँ को, शर्माया क्या ?

 

फुनगी फुनगी खुशियाँ लटकी पेड़ों पर

छोटा क़द भी, तोड़ उसे ले पाया क्या ?

 

सारे पत्थर आईनों पर टूट पड़े

कोई पत्थर ,पत्थर से टकराया क्या ?

जुगनू सहमा सहमा सा क्यों लगता है

कोई सूरज फिर उसको धमकाया क्या ?

 

खाली जाम सुराही प्याले पूछ रहे

किसी समस्या का निदान भी पाया क्या ?

***************************************

गिरिराज भंडारी

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 23, 2015 at 8:08pm
आदरणीय गिरिराज सर बढ़िया ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई। छूट न लेते हुए जरा निकट के चौकल बनते तो और निखार आ जाता ग़ज़ल में। ऐसा मुझे लगता है। सादर।
Comment by दिनेश कुमार on April 23, 2015 at 6:19pm
बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए मेरी तरफ़ से भी हार्दिक दाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय गिरिराज सर जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 4:39pm

गहराई तो खूब है आदरणीय .. बस भर मन पानी हींच लेने (खींचने)  की आवश्यकता है. .. :-)))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2015 at 3:55pm

आदरणीय सौरभ भाई जी , आपकी बात से मै शत प्रतिशत सहमत हूँ , हमेशा था , बस ,  समझिये कि  बोरिंग की पिछली खुदाई से पानी कम निकल रहा है और अब  निस्तार के लिये ज्यादा पानी चाहिये  , जल स्तर नीचे चला गया है , अब ब्लास्टिंग करवाना पड़ेगा , कोशिश मे हूँ  आप लोगों का साथ है तो आज नहीं कल गहराई बढ़नी तय है ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2015 at 3:37pm

आदरणीय श्याम भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2015 at 3:36pm

आदरणीय समर कबीर  भाई , आपका बहुत बहुत आभार , गुणिजन की बातों  का संज्ञान ले रहा हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2015 at 3:34pm

आ. बड़े भाई गोपाल जी  , आपकी आपत्ति सही है , अभी सुधार कर लूंगा , आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2015 at 3:33pm

आभार आपका , आ. नीलेश जी

Comment by Shyam Narain Verma on April 23, 2015 at 3:12pm
बहुत सुन्दर गजल।  ढेरों दाद कुबूल करें। सादर
Comment by Samar kabeer on April 23, 2015 at 2:28pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,अच्छे और नए ख़यालों को आपने ग़ज़ल के पैकर में ढाल दिया है,आगे क्या कहूँ कहने लायक़ जो बातें थी वह गुणिजन कह चुके,ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

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