For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-नूर -आँख से उतरा नहीं है

२१२२/२१२२ 
आँख से उतरा नहीं है 
बस!! कोई रिश्ता नहीं है. 

हम पुराने हो चले हैं 

आईना रूठा नहीं है.

मुस्कुराहट भी पहन ली  

ग़म मगर छुपता नहीं है.

साथ ख़ुशबू है तुम्हारी 

ये सफ़र तन्हा नहीं है.

तुम बदल जितना गए हो 

वक़्त भी बदला नहीं है.

टूट जाता है वो अक्सर 

जो कभी झुकता नहीं है.

है बदन पर धूल लिपटी 

दिल मगर मैला नहीं है.

वक़्त ने ठुकरा दिया बस 

वरना मुझ में क्या नहीं है.  
.
निलेश "नूर"
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 675

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2015 at 8:32pm

धन्यवाद आ. गुमनाम जी 

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 17, 2015 at 8:17pm
वाह बहुत खूब सर जी इस खूब सूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
.............................
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2015 at 7:28pm

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 7:05pm

आदरणीय नीलेश भाई ,   क्या खूब गज़ल कही है , वाह !! लाजवाब , दिली मुबारक बाद कुबूल करें ॥

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2015 at 2:24pm

शुक्रिया आ. डॉ साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2015 at 2:23pm

शुक्रिया आ. समर कबीर साहब. दरअसल छुट्टी के दौरान घर आया हुआ था इसलिए सारा समय परिवार को दे दिया. अब फिर काम पर लौटा हूँ तो मंच पर भी नियमित हाज़री बजाने का प्रयास करूँगा.
शुक्रिया फिर एक बार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2015 at 2:22pm

शुक्रिया आ. विजय शंकर जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 17, 2015 at 12:11pm

नूर भाई

मकते की दुहाई . गजब - गजब . सादर .

Comment by Samar kabeer on April 17, 2015 at 10:48am
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,वाह वाह वाह,क्या ख़ूबसूरत ग़ज़ल से नवाज़ा है आपने मंच को,हर शैर में एक दास्ताँ छुपी है,लेकिन भाई आपकी ग़ज़लें सुनने को तरस जाते हैं,मंच से इतनी देर तक ग़ायब न रहा करें,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 17, 2015 at 1:41am
तुम बदल जितना गए हो
वक़्त भी बदला नहीं है.
वक़्त ने ठुकरा दिया बस
वरना मुझ में क्या नहीं है.
बहुत खूब , आदरणीय नीलेश शेवगांवकर जी, बहुत बहुत बधाई , इस उम्दा ग़ज़ल के लिए , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service