कहते हैं इल्ज़ाम छुपाकर रक्खा है 
 मैंने तेरा नाम छुपाकर रक्खा है. 
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 झाँक के देखो मेरी इन आँखों में तुम 
 अनबूझा पैग़ाम छुपाकर रक्खा है.
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 शायद वो हो मुझ से भी ज़्यादा प्यासा 
 उसकी ख़ातिर जाम छुपाकर रक्खा है. 
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 जिसको तुम सब कहते हो ईमाँ वाला,
 उसने अपना दाम छुपाकर रक्खा है.
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 आया है वो आज जुबां पर गुड लेकर 
 शायद कोई काम छुपाकर रक्खा है.
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 मस्जिद की दीवार किनारे तुलसी ने
 अपने मन का राम छुपाकर रक्खा है.  
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 लोग भला समझेंगे इस रिश्ते को क्या 
 ‘नूर’ इसे गुमनाम छुपाकर रक्खा है. 
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नूर 
मौलिक/ अप्रकाशित  
Comment
शुक्रिया डॉ. श्रीवास्तव साहब
शुक्रिया श्याम जी
शुक्रिया भाई उमेश जी
शुक्रिया आ.समर कबीर साहब
मस्जिद की दीवार किनारे तुलसी ने
 अपने मन का राम छुपाकर रक्खा है   ------ वाह वाह नूर भाई . बेहतरीन कही.  सादर . 
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आ.नीलेश जी. हार्दिक बधाई . बहुत खूब .क्या कहने.
वाह वाह वाह सर उम्दा
शुक्रिया दिनेश कुमार जी ...दिल से
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