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ज़िंदगी गम का समंदर है ..............

दूर मुझसे कितने दिन रह पायोगे , सोच लो , फिर रहो
दर्द-ए-दिल है ये , सह पायोगे , सोच लो, फिर सहो

लौट के खुद पे आती हैं , बद-दुयाएँ , सुना है ?
सहन ये सब कर पायोगे , सोच लो , फिर कहो

क्या नहीं उसने दिया , पर क्या दिया तुमने उसे ?
क्या कभी उठ पायोगे इतना , सोच लो , फिर गिरो

इतना भी आसां नहीं है, रास्ता ख़ुद्दारियों का
सूरज की जलन सह पायोगे , सोच लो , फिर बढ़ो

घर से बे-घर होके भी उसने बसाई दिल की दुनिया
आँसुयों सा ये सफ़र कर पायोगे , सोच लो , फिर चलो

उठने लगी है हर तरफ आवाज़ तेरी ख़िलाफ , लेकिन ?
क्या यूँ ही डर के कहीं छुप जाओगे , सोच लो , फिर डरो

ज़िंदगी गम का समंदर है इक , ये ख़याल रहे
पार कर पायोगे इसको "अजय", सोच लो , फिर बहो

अजय कुमार शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 537

Comment

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Comment by ajay sharma on February 15, 2015 at 10:42pm

giriraj sir .......dhanya hua ...yadi mistakes ki taraf ....kuch ingit kar dete to aur bhi ....khush ho jata ....nevertheless ....bahut  bahut shukriya 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2015 at 9:00pm

आदरणीय अजय भाई , खुद  की वस्तविकता क्या है ये जानने के लिये आपकी रचना प्रेरित कर रही है । सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:27am

आदरणीय अजय जी , सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई प्रेषित !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2015 at 5:11pm

इस रचना  के लिए हार्दिक बधायी सादर 

Comment by Samar kabeer on February 12, 2015 at 11:12pm
जनाब अजय शर्मा जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद क़ुबूल करें,"उठने लगी है हर तरफ आवाज़ तेरी ख़िलाफ , लेकिन" इस मिसरे में "तेरी" की जगह तेरे होना चाहिये,शायद ये टाईपिंग मिस्टेक हो ?

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 12, 2015 at 9:28pm

इस रचना प्रयास हेतु बधाई किन्तु टंकण त्रुटि देख लें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 9:22pm
सुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 6:47pm

अजय जी

टंकण की अनेक अशुद्धियों से एक अच्छी  गजल का मजा कुछ कम हुआ है i  आगे इसका ध्यान अवश्य रखे i सादर i

Comment by savitamishra on February 12, 2015 at 12:30pm

वाह वाह ..बहुत बढ़िया

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 12, 2015 at 12:04pm
वाह, बहुत सुन्दर,
लौट के खुद पे आती हैं , बद-दुयाएँ , सुना है ?
सहन ये सब कर पायोगे , सोच लो , फिर कहो॥
बहुत बहुत बधाई आदर ई अजय शर्मा जी, सादर।

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