For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदगी गम का समंदर है ..............

दूर मुझसे कितने दिन रह पायोगे , सोच लो , फिर रहो
दर्द-ए-दिल है ये , सह पायोगे , सोच लो, फिर सहो

लौट के खुद पे आती हैं , बद-दुयाएँ , सुना है ?
सहन ये सब कर पायोगे , सोच लो , फिर कहो

क्या नहीं उसने दिया , पर क्या दिया तुमने उसे ?
क्या कभी उठ पायोगे इतना , सोच लो , फिर गिरो

इतना भी आसां नहीं है, रास्ता ख़ुद्दारियों का
सूरज की जलन सह पायोगे , सोच लो , फिर बढ़ो

घर से बे-घर होके भी उसने बसाई दिल की दुनिया
आँसुयों सा ये सफ़र कर पायोगे , सोच लो , फिर चलो

उठने लगी है हर तरफ आवाज़ तेरी ख़िलाफ , लेकिन ?
क्या यूँ ही डर के कहीं छुप जाओगे , सोच लो , फिर डरो

ज़िंदगी गम का समंदर है इक , ये ख़याल रहे
पार कर पायोगे इसको "अजय", सोच लो , फिर बहो

अजय कुमार शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 535

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ajay sharma on February 15, 2015 at 10:42pm

giriraj sir .......dhanya hua ...yadi mistakes ki taraf ....kuch ingit kar dete to aur bhi ....khush ho jata ....nevertheless ....bahut  bahut shukriya 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2015 at 9:00pm

आदरणीय अजय भाई , खुद  की वस्तविकता क्या है ये जानने के लिये आपकी रचना प्रेरित कर रही है । सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:27am

आदरणीय अजय जी , सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई प्रेषित !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2015 at 5:11pm

इस रचना  के लिए हार्दिक बधायी सादर 

Comment by Samar kabeer on February 12, 2015 at 11:12pm
जनाब अजय शर्मा जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद क़ुबूल करें,"उठने लगी है हर तरफ आवाज़ तेरी ख़िलाफ , लेकिन" इस मिसरे में "तेरी" की जगह तेरे होना चाहिये,शायद ये टाईपिंग मिस्टेक हो ?

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 12, 2015 at 9:28pm

इस रचना प्रयास हेतु बधाई किन्तु टंकण त्रुटि देख लें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 9:22pm
सुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 6:47pm

अजय जी

टंकण की अनेक अशुद्धियों से एक अच्छी  गजल का मजा कुछ कम हुआ है i  आगे इसका ध्यान अवश्य रखे i सादर i

Comment by savitamishra on February 12, 2015 at 12:30pm

वाह वाह ..बहुत बढ़िया

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 12, 2015 at 12:04pm
वाह, बहुत सुन्दर,
लौट के खुद पे आती हैं , बद-दुयाएँ , सुना है ?
सहन ये सब कर पायोगे , सोच लो , फिर कहो॥
बहुत बहुत बधाई आदर ई अजय शर्मा जी, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service