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सोने का संसार !

उषा छिप गयी नभस्थली में,

देकर यह उपहार !

लघु–लघु कलियाँ भी प्रभात में,

होती हैं साकार !

प्रातः- समीरण कर देता है,

नव-जीवन संचार !

लोल-लोल लहलही लतायें,

नव-जीवन-संचार !

झुकी जा रही हैं ले तन में,

नव यौवन का भार !

भ्रमर छूटकर पंकज दल से,

करने लगे विहार !

भानु-करों ने खोल दिया है ,

काराग्रह का द्वार

कल-किरणें हैं शयन-सदन की ,

मंजुल वंदनवार !

सजनी रजनी की सुख स्मृति ही,

बस अब है आधार !

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित

  

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 8, 2015 at 9:18pm

आदरणीय हरिप्रकाश जी  इस तरह की साहित्यिक रचनाओं को पढने का अलग ही आनंद है सुंदर प्राकृतिक चित्रण ,,सुंदर भाव  बहती हुई इस रचना में अन्यथ न लीजियेगा 

प्रातः- समीरण कर देता है,

नव-जीवन संचार 

लोल-लोल लहलही लतायें,

नव-जीवन-संचार !...नव जीवन संचार की पुनरावृत्ति से थोडा सी रूकावट मुझे लगी ..ये मेरी व्यक्तिगत राय हा अन्यथा न लीजियेगा सादर बधाई के साथ 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 8, 2015 at 12:27pm
वाह , प्रकृति सा प्रवाह है इस प्रकृति के वर्णन में, एक सुन्दर प्रवाह मय कविता , आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर, सादर।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 8, 2015 at 11:56am

बहुत सुंदर, आदरणीय हरिप्रकाश जी. आकर्षक व् अपना प्रभाव छोडती रचना पर , आपको हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 8, 2015 at 11:12am
वाह वाह कविता का लालित्य देखते ही बन रहा है। बेहद सुन्दर। उत्कृष्ट रचना बधाई। एक निवेदन
लघु लघु कलियाँ भी प्रभात में पद में भी को जो कर लें। बधाई आदरणीय हरिप्रकाश जी।
Comment by savitamishra on February 8, 2015 at 11:01am

वाह बहुत बढ़िया

Comment by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 10:38am

आदरणीय अरुण कुमार निगम सर , रचना पर आपकी उपस्तिथि एवम् प्रेरणास्प्रद प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार ! सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on February 8, 2015 at 10:29am

आदरणीय हरि प्रकाश जी, कविता में शब्दों का लालित्य देखते ही बन रहा है, शुभकामनायें .............

Comment by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 10:11am

आदरणीय गिरिराज सर,आपकी उत्साहवर्धक और प्रेरणादायी टिप्पणी के लिए हृदय से धन्यवाद , सादर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 8, 2015 at 9:50am

क्या खूब सूरत वर्णन किया है आपने , प्रकृति का ! बहुत खूब आदरणीय हरि भाई , दिली बधाई स्वीकार करें ।

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