For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐ दिल ……


ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान  होता है
हर किसी के आगे क्यूँ  व्यर्थ में रोता है
कौन भला यहां  तेरा दर्द समझ पायेगा
हर अरमान यहां अश्क के साथ सोता है

ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान  होता है ……

ये सांझ नहीं अपितु सांझ का  आभास है
पल पल क्षरण होते रिश्तों  का आगाज़ है
भावों की कन्दराओं में बोलता सन्नाटा है
पाषाणों में कहाँ  प्यार  का सृजन होता है

ऐ दिल  तू क्यूँ  व्यर्थ  में परेशान होता है ……

ऐ शलभ तू क्यूँ किसी लौ पे आसक्त होता है
क्यूँ  अन्धकार  में अपना अस्तित्व खोता है
ये दुनिया तो  बस इक स्वार्थ की महफ़िल है
खुशी के आवरण में यहाँ तो साथ ग़म होता है

ऐ दिल ! तू  क्यूँ  व्यर्थ  में  परेशान  होता है
हर  किसी  के  आगे  क्यूँ  व्यर्थ  में  रोता है

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 595

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on February 4, 2015 at 11:26am

आदरणीय    गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on February 4, 2015 at 11:26am

आदरणीय    somesh kumar जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on February 4, 2015 at 11:25am

आदरणीय    मिथिलेश वामनकर जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on February 4, 2015 at 11:25am

आदरणीय   Dr. Vijai Shanker  जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on February 4, 2015 at 11:20am

आदरणीय  Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on February 4, 2015 at 11:20am

आदरणीय   Er. Ganesh Jee "Bagi" जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल शुक्रिया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2015 at 6:12pm

आदरणीय सुशील भाई , बहुत सुन्दर समझाइश देती हुई आपकी रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by somesh kumar on February 2, 2015 at 10:30pm

ये सांझ नहीं अपितु सांझ का  आभास है 
पल पल क्षरण होते रिश्तों  का आगाज़ है 
भावों की कन्दराओं में बोलता सन्नाटा है 
पाषाणों में कहाँ  प्यार  का सृजन होता है

ऐ दिल  तू क्यूँ  व्यर्थ  में परेशान होता है

dil preshan na ho ,sunder bhav aadrniy


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 2, 2015 at 8:15pm

आदरणीय सुशील सरना जी, सुन्दर कविता के लिए बधाई, सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 2, 2015 at 7:43pm
दिल को समझाती बहुत सुन्दर कविता बनी , आदरणीय सुशील सरना जी , बधाई, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service