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ग़ज़ल--ज़हर आकर पिला दे तू

मुहब्बत को निभा दे तू
ज़हर आकर पिला दे तू
....
नज़र से उठ नहीं पाऊँ
मुझे ऐसा गिरा दे तू
....
व़फायें जानता हूँ मैं
नया कुछ तो सिख़ा दे तू
....
मुझे मँझाधार मैं लाकर
मेरी कश्ती हिला दे तू
....
कभी सोचा न हो मैंने
मुझे ऐसा सिला दे तू
....
क़यी मुद्दत से तन्हा हूँ
मुझे मुझसे मिला दे तू
..
..
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 714

Comment

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Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 6:58pm
Comment by umesh katara on January 28, 2015 at 6:57pm
Comment by seema agrawal on January 28, 2015 at 2:32pm

बहुत खूब 
व़फायें जानता हूँ मैं
नया कुछ तो सिख़ा दे तू

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 28, 2015 at 11:50am

सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 28, 2015 at 10:00am

bahut badhiya ghazal hui hai ..is shaandaar rachna ke liye aapko hardik badhaaaye saadar 

Comment by vijay on January 28, 2015 at 9:56am
बढ़िया ग़ज़ल भाई मुबारक हो

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 28, 2015 at 1:05am

वाह वाह.... उम्दा ग़ज़ल हुई है. शेर-दर-शेर दाद कुबूल कीजिये .

Comment by somesh kumar on January 27, 2015 at 11:24pm

क़यी मुद्दत से तन्हा हूँ
मुझे मुझसे मिला दे तू|

जिस ख्याल में लिखा है 

उसमें ही डूबा दे तू 

मुझे आता नहीं गज़ल कहना 

अपनी शागिर्द बना ले तू |

गुस्ताखी माफ़ ,भाई जान पर अच्छी गज़ल 

Comment by ajay sharma on January 27, 2015 at 10:05pm

क़यी मुद्दत से तन्हा हूँ
मुझे मुझसे मिला दे तू........wah wah

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 27, 2015 at 8:42pm
वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

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